युवा कवि कंदर्प पंड्या की दो कविताएं- बाधाओं से कब तक डरेगा बंदे, सुबह की पहली किरण

बाधाओं से कब तक डरेगा बंदे!
बाधाओं से कब तक डरेगा,
कब तक अपनी राहे पलटेगा,
वो राहो के पत्थर हैं,
उसे किनारे कर बढ़ चल आगे,
उनका काम उन्हें करने दे,
अपना तो खुद करके दिखा,
तुने विद्वान से ज्ञान पाया है,
वो विद्वान तेरा गुरु है जो,
सुन रे बंदे एक बात जरा सी
गुरु ही महिमा पर रख भरोसा,
उस शिखर को पाएगा,
कदम से कदम बढ़ाएगा,
न रुकने की सिख सिखाएगा।
कविता-दो
सुबह की पहली किरण,
मुझे रात के सपनों से निकाल कर,
मेरे हौंसले को बढ़ाने वाली ,
मुझे यू मदमस्त करने वाली,
हां वही सुबह की पहली किरण…
मेरे सपनों को नया मार्ग दिखाने वाली,
मुझे उठाकर लक्ष्य की ओर अग्रसर करने वाली,
मुझे खुद के होने का एहसास दिलाने वाली,
मुझे चुनोतियों से टकराने,
की हिम्मत देने वाली,
हा वही सुबह की पहली किरण…
मुझे ऊँचाइयों पर बैठाने वाली,
मेरे आत्मसम्मान को मधुर करने वाली,
वो कुछ इस तरह,
हर रोज निकल आती,
चाँद को छूपा कर,
अपनी किरणों को बिखेरती है,
हां वही सुबह की पहली किरण…
कवि का परिचय
नाम- कंदर्प पण्डया
पता- चिखली, डूँगरपुर, राजस्थान।
परिचय-पेशे से छात्र युवा हिंदी लेखक कंदर्प पण्डया चिखली, डूंगरपुर, राजस्थान के एक लेखक हैं। उन्होंने उच्च माध्यमिक सरकारी विद्यालय से पूरा कर लिया है। वर्तमान में वह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से बीएससी में अध्ययनरत हैं। वे अपने जुनून के रूप में विगत एक वर्ष से कविता लिख रहे हैं। वे भविष्य में एक लेखक और एक पुलिस उपाधीक्षक बनना चाहते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।