युवा कवि कंदर्प पण्डया की दो कविताएं- जब मैं खुद के अंदर देखता हूं, कोई बड़ी बात तो नही
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जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ….
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ,
एक नया किरदार पाता हूँ,
एक नया आदर्श पाता हूँ,
एक नया इंसान देखता हूँ,
एक नया किरदार बनाता हूँ,
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ,
अपनी बुराइयों को सुधारता हूँ,
अपनी अच्छाइयों को निखारता हूँ,
एक नया किरदार बनाता हूँ,
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ,
कुछ अनोखा सा पाता हूँ,
कुछ करने का जज्बा जागता हूँ,
एक नया किरदार बनाता हूँ ,
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ,
मैं तुम्हारे अक्ष को पाता हूँ,
तुम्हारा साया मुझमे देखता हूँ,
तुम्हारा साथ मैं मांगता हूँ,
एक नया किरदार बनाता हूँ,
हां तब ही,
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ,
दूसरी कविता
कोई बड़ी बात तो नहीं,
पर बात छोटी भी तो नहीं!
बातें एक अरसे के बाद करना,
जहा पर बंद हुई वो भूल जाना,
फिर नए से शुरूवात करना,
कोई बड़ी बात तो नही,
पर बात छोटी भी तो नही!
भूल जाते हैं लोग अक्सर
समय की पाबंदियों मैं
उन्हें याद दिलवाना
कोई बड़ी बात तो नही,
पर बात छोटी भी तो नही!
भूल जाते हैं लोग अक्सर
खुद मैं जीते जीते
की कोई उनकी यादों
में ही जीता रहता है
कोई बड़ी बात तो नहीं,
पर बात छोटी भी तो नहीं!
भूल जाते है लोग अक्सर
कोई उनकी फिज़ाओ
पर जान छिड़कता है,
कोई उनकी ज़ुल्फो
में सोना चाहता है,
कोई बड़ी बात तो नही,
पर बात छोटी भी तो नही!
कवि का परिचय
नाम- कंदर्प पण्डया
पता- चिखली, डूँगरपुर, राजस्थान।
परिचय-पेशे से छात्र युवा हिंदी लेखक कंदर्प पण्डया चिखली, डूंगरपुर, राजस्थान के एक लेखक हैं। उन्होंने उच्च माध्यमिक सरकारी विद्यालय से पूरा कर लिया है। वर्तमान में वह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से बीएससी में अध्ययनरत हैं। वे अपने जुनून के रूप में विगत एक वर्ष से कविता लिख रहे हैं। वे भविष्य में एक लेखक और एक पुलिस उपाधीक्षक बनना चाहते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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