पितृ दिवस पर युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की दो कविता
जब ज़िन्दगी की दुःस्वारिया से हम परेशां हो जाते हैं।
जब ये दुनिया वाले हमको रुला जाते हैं।।
जब किसी उधेड़बुन में रात गुजर जाती हैं।
जब इन मख़मली बिस्तरों पर भी नींद नही आती है।।
जब हम मासूमो की मासूमियत कहीं खो जाती है।
जब हम चाह कर भी अपनों के नही हो पाते ।।
जब जिंदगी में कालिमा छा जाती है।
जब हम उम्मीद की सारी किरणें खो देते हैं।।
जब सारे अपने हमसे रिश्ता तोड़ जाते हैं ।
तब हमको सिर्फ और सिर्फ पापा याद आते हैं।।
पापा याद आते हैं।।
कविता—-2
चुपके से आकर माथा चुम लिया,
जब हम सब गहरी नींदों में सोये थे।
हमनें वो फसलें भी काटी हैं,
जो बीज उन्होंने बोये थे।
आता नही है उनको,
दिखाना और प्यार जताना यारों।
वो पिता हैं जिनके लिए,
स्वयं राम भी रोये थे।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।