साहित्यकार एवं रंगकर्मी मदन मोहन डुकलान की दो गढ़वाली कविताएं

भारि सगत ……नखरु बगत…..
कोरोना
कनि या मो मार कार आज
उजाडी दी घर बार आज
काम व्योपार खै गे कन
चाटि गे सब रुज़्गार आज
कनि चैल पैल रैंद छै यख
बंजे दी सब बज़ार आज
दिन बार मैंना घुळी गे सब
गळे दी सब त्योहार आज
इनि अग्वारि बि नि छे या दुन्या
बिगाडी गे कन अंद्वार आज
यक्ल्वांस
बगत यो कनो सगत आइ
लाचार मन्खयू दैसत ह्वाइ
भैर रिटणी चौछवाडी मौत
भितरी भितर असंद आइ
दगुडु जो निभाणु दूर रैकी
दग्ड्या बस वी पसंद आई
घरबासे इन्नि यक्ल्वांस मा
बस ख्याल तेरो फगत आइ
दुन्यान बिगाडे दुन्याकि सूरत
अब सबक सिखाणा कुदरत आइ
कवि का परिचय
नाम- मदन मोहन डुकलान
मदन मोहन डुकलान कवि, साहित्यकार के साथ ही रंगकर्मी भी हैं। वह देहरादून निवासी हैं। वह गढ़वाली कविता का पोस्टर चिट्ठी भी पिछले कई साल से निरंतर प्रकाशित कर रहे हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भौत बढिया गज़ल, डुकलांण जी कि.