एम्स ऋषिकेश में दो दिवसीय कार्यशाला, सिर की चोट के उपचार का दिया प्रशिक्षण
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में नेशनल हेल्थ मिशन, उत्तराखंड की ओर से दो दिवसीय मैनेजमेंट एंड ट्रेनिंग ऑफ हैड इंज्यूरी पेशेंट्स प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से आए प्रतिभागी मेडिकल ऑफिसर्स को हेड इन्ज्यूरी (सिर की चोट) से ग्रसित मरीजों के उपचार संबंधी प्रशिक्षण दिया। कार्यशाला में 10 जिलों से आए 18 प्रतिभागियों के अलावा 10 न्यूरो सर्जरी रेजिडेंट, 20 न्यूरो सर्जरी नर्सेस व 20 बीएससी नर्सिंग स्टूडेंट्स ने भी प्रशिक्षण का लाभ लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग की ओर से आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सकों की ओर से राज्य सरकार के मेडिकल ऑफिसर्स को बताया गया कि वह अपने अस्पतालों में सिर की चोट से ग्रसित किन मरीजों को उपचार के लिए दाखिल कर सकते हैं। साथ ही उन्हें यह भी बताया गया कि किस प्रकृति के हेड इन्ज्यूरी से ग्रसित मरीजों को राज्य सरकार के अस्पतालों से एम्स के लिए रैफर किया जा सकता है। उन्होंने चिकित्सकों को पीएचसी तथा सीएचसी स्तर पर भर्ती मरीजों को दिए जाने वाले उपचार की तकनीकी जानकारी भी दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर( डॉ.) मीनू सिंह ने कहा कि एम्स द्वारा टेलिमेडिसिन सेवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे राज्य के दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को भी संस्थान से चिकित्सीय परामर्श मिल सके। प्रोफेसर( डा.) मीनू सिंह ने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य सिर की चोट से ग्रसित ऐसे मरीजों को पीएचसी और सीएचसी स्तर पर बेहतर उपचार दिलाना है। उन्हें हायर सेंटर रैफर करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि उक्त केन्द्रों के चिकित्सा अधिकारियों को एम्स टेलिमेडिसिन सुविधा के माध्यम से नियमिततौर पर परामर्श में सहयोग करेगा। जिससे सिर की सामान्य चोट से ग्रसित घायलों को घर के समीपवर्ती अस्पताल में ही उपचार की सुविधा मिल सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यशाला में दिल्ली एम्स के न्यूरोलाजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) पद्मा श्रीवास्तव ने बताया कि उत्तराखंड व हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में दुर्घटना में सिर की चोट लगने से ग्रसित मरीजों व घायलों के लिए टेलिमेडिसिन सेवा का माध्यम बेहद जरूरी है। पहाड़ी राज्य होने के कारण कई बार देखने में आया है कि विषम भौगोलिक स्थिति होने के कारण व दुर्गम क्षेत्रों में होने वाली घटना की वजह से सिर की चोट के मरीज को समय रहते बड़े अस्पताल तक पहुंचने में विलम्ब हो जाता है। इससे मरीज की स्थिति गंभीर हो सकती है। ऐसे में सम्बन्धित पीएचसी अथवा सीएचसी में तैनात चिकित्सकों को यदि एम्स द्वारा प्रशिक्षित किया जाएगा तो उन्हें टेलिमेडिसिन सेवा और प्रशिक्षित चिकित्सकों के माध्यम से समय रहते बेहतर उपचार दिया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संस्थान की डीन एकेडमिक प्रोफेसर (डॉ.)जया चतुर्वेदी ने इस तरह की कार्यशाला को पहाड़ के परिप्रेक्ष्य में अच्छी पहल बताया और उम्मीद जताई कि इस कार्यशाला में प्रशिक्षित प्रतिभागियों के माध्यम से राज्य के सुदूरवर्ती अस्पतालों में सिर की चोट से ग्रसित मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा। एम्स न्यूरोसर्जरी विभाग के डा. निशांत गोयल ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान प्रतिभागी चिकित्सकों से जिला स्तर पर हेड इन्ज्यूरी से ग्रसित मरीजों के लिए उपलब्ध उपचार संसाधनों की जानकारी भी ली गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डा. निशांत गोयल ने बताया कि इसके आधार पर एम्स की ओर से राज्य सरकार को सिर की चोट से ग्रसित घायलों के बेहतर इलाज के लिए मुकम्मल सुविधाओं से जुड़े सुझाव दिए जा सकते हैं। डॉक्टर निशांत ने इस आयोजन के लिए मिशन का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि मिशन राज्य के स्वास्थ्य संबंधी विषयों को लेकर गंभीर है और समय समय पर एम्स के समन्वय से इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डा. जितेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि सिर की चोट गंभीर विषय है। खासकर इससे युवा अवस्था के मरीज ज्यादा ग्रसित होते हैं। इससे पूरा परिवार प्रभावित होता है। चूंकि परिवारों में 18 से 60 वर्ष की उम्र के लोग ही घर की आर्थिकी चलाते हैं। लिहाजा आजीविका चलाने वाले व्यक्ति के दुर्घटना से ग्रसित हो जाने पर उस परिवार में आर्थिक संकट भी गहरा जाता है। डा. जितेंद्र चतुर्वेदी ने ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने और बताया कि बेहतर उपचार व परामर्श की आवश्यकता होती है। कार्यशाला में मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रोफेसर संजीव मित्तल, डीन रिसर्च प्रोफेसर वर्तिका सक्सेना, डॉ. मृत्युंजय, डॉक्टर नीरज, डॉक्टर कनव, डा. पुलकित मित्तल, डा. मोहित गुप्ता आदि मौजूद रहे।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।