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November 8, 2024

फटी जींस, बीस बच्चे, अमेरिका और आगे क्या ? उत्तराखंड को पीछे धकेलती मुद्दाविहीन राजनीतिः भूपत सिंह बिष्ट

उत्तराखंड की राजनीति में दस मार्च को नेतृत्व परिवर्तन हुआ और अपनी महता साबित करने के लिए वही उठा पठक के खोखले दावपेंच शुरू हो गए।


उत्तराखंड की राजनीति में दस मार्च को नेतृत्व परिवर्तन हुआ और अपनी महता साबित करने के लिए वही उठा पठक के खोखले दावपेंच शुरू हो गए। दावा किया गया कि पहाड़ी प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं को फटी जींस पहनने से रोकने की हिमाकत कर दी है और शालीन वेशभूषा के पक्ष में नागपुर का एजेंडा बढ़ा दिया है।
सब जानते हैं कि उत्तराखंड की महिलायें फटी जींस नहीं, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के लिए चिंतित हैं। बच्चों के जींस पहनने या ना पहनने से मुंह बाये खड़ी समस्या खत्म नहीं होगी। हां, कुछ चालू लोग विषयांतर करने में कामयाब हो रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री कहते हैं कि तीरथ सिंह रावत ने नई पीढ़ी को संस्कारित जीवन की सीख क्या दी कि एक तबका उनके खिलाफ खड़ा हो गया। मुख्यमंत्री बच्चों की एक संगोष्ठी में बोल रहे थे। उनका आशय देवभूमि में आ रहे पाश्चात्य नागरिकों के सामने अपनी संस्कृति व पहनावे को दुरूस्त करने की उम्मीद कर दी तो तो आसमान तो नहीं गिर गया था।
उधर विदेशी मेहमान उत्तराखंड व देश के अन्य भागों में हमारी शालीन वेशभूषा, संस्कृति और योग के प्रभाव में आ रहे हैं। उन्होंने संदर्भ के नाते नई पीढ़ी और मां पिता पर भी कटाक्ष किया था कि बच्चे को घर स्कूल में कैसी शिक्षा दी जा रही है, इस पर ध्यान देना जरूरी है। लेकिन खाली बैठे कुछ लोगों को बात का बतंगड़ बनाने का अवसर ढूंड रहे हैं।
दिनेश शास्त्री सवाल उठाते हैं कि उन लोगों से पूछा जा सकता है कि पहाड़ में अधिकतर महिलायें तो फटी जींस और पाश्चात्य पहनावे से कोसों दूर हैं। फिर भी क्या वे अपने परिजनों को अर्द्धनग्न वस्त्रों में देखना पसंद करेंगे ? सच तो यह है कि भारतीय संस्कृति में नारी को अस्मिता का पर्याय माना जाता है।
विश्व वानिकी दिवस पर रामनगर में सीमित लोगों के बीच दिये गए तीरथ सिंह रावत के आशिंक कथन को नए मुख्यमंत्री की अयोग्यता और अपमान के लिए बढ़ा चढ़ाकर परोसा गया। तीरथ सिंह रावत रौ में आकर कह गए कि आपदा के समय में सरकार जनता के लिए तमाम राहत उपलब्ध कराती है, लेकिन यह परिवारों के बीच पर्याप्त नहीं हो पाता है।

समाज में कुछ लोग परिवार नियोजन की तरफ नहीं ध्यान नहीं दे रहे हैं। आपदा में ऐसे लोगों के प्रति दूसरा वर्ग हाय तौबा मचाने लगता है कि राहत उन्हें कम दी गई है। परिहास में कहे गए तीरथ सिंह रावत के शब्द- की आप भी बीस बच्चे पैदा करते तो आपको भी ज्यादा राहत मिलती, यानि आपदा में ही प्रति व्यक्ति राहत दी जाती है और आगे पीछे अपने परिवार की परवरिश खुद उठानी पड़ेगी। ऐसे में सीमित परिवार अपनी शिक्षा, चिकित्सा, रोजी रोटी का जुगाड़ करने में सफल हो सकता है। विरोधियों ने हौ हल्ला मचा दिया कि मुख्यमंत्री ने बीस बच्चे पैदा करने का आह्वान किया है। छह दशक पहले पहाड़ के परिवारों में सात – आठ बच्चे होना सामान्य बात रही है।
भारत ब्रिटीश का रहा है गुलाम 
पहले इंग्लैड में पंजीकृत ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत और चीन में व्यापार के बहाने एशिया में अपने पैर पसारे। भारत की छोटी रियाशतों को अपने कब्जे में लेकर कम्पनी ने राज किया। 1857 की क्रांति के बाद इंग्लैड की महारानी ने कम्पनी से शासन अपने हाथों में ले लिया। बाद में भारत में आजादी के लिए आंदोलन और खुली बगावत के चलते ब्रिटीश सरकार ने भारत सहित कई देशों को आजाद कर दिया।
ब्रिटीश महारानी के लिए कहावत बनी कि यूरोप से एशिया तक इंग्लैंड का शासन होने से महारानी के राज में कभी सूरज डूबता नहीं था। अमेरिका भी 245 साल पहले इंग्लैंड की कालोनी था और ब्रिटीश के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई जीतकर आज विश्व की बड़ी शक्ति के रूप में खड़ा है।
तीरथ सिंह रावत का भाव यही था कि विश्व की सबसे बड़ी शक्तियां आज कोरोना के कहर में डोल गई है। खासकर एक करोड़ से अधिक नागरिकों की मौत होने से अमेरिका और ब्रिटेन की हालात बदहवास है। वैसे भी यूरोपियन लोगों को देशी भाषा में फिरंगी, अंग्रेज या मलेच्छ कहने की आदत है। ऐसे में मुख्यमंत्री के मुंह से फिसला अमेरिकन शब्द विरोधियों ने उनके इतिहास ज्ञान का पैमाना बनाने का प्रयास किया।
कुछ बड़बोले पत्रकार उन्हें अपना मुंह बंद रखने की सलाह दे रहे हैं। कुछ अमर्यादित टिप्पणियों पर उतर आये हैं। खैर … तीरथ सिंह रावत निडर और निर्भय होकर अपनी बात कह रहे हैं और उत्तराखंड के लिए कोरोना पीड़ित होने के बावजूद निरंतर सक्रिय हैं। दिनेश शास्त्री का मानना है कि आलाकमान ने सांसद तीरथ सिंह रावत को बड़ी जिम्मेदारी देकर उनको अग्निपरीक्षा के लिए आगे किया है। बेलगाम नौकरशाही, विरासत में मिली अनेक समस्यायें, कर्मचारियों के तीखे तेवर, पटरी से उतरी अर्थ व्यवस्था, चापलूसों की फौज के अलावा अंतर्विरोधों के मायाजाल से पार पाने की चुनौती किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होती।

लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।

 

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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