उत्तराखंड के पहाड़ों में सावन का पहला सोमवार आज, शिवालयों में उमड़ी भीड़, हरेला पर्व पर पौधरोपण

मैदानी इलाकों में जहां आज सावन का दूसरा सोमवार मनाया जा रहा है। वहीं, उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सावन का आज पहला सोमवार है। ऐसे में शिवालयों में सुबह से ही लोगों की जलाभिषेक के लिए भीड़ लग गई। वहीं, हरेला पर्व भी राज्य के अधिकांश स्थानों पर मनाया जा रहा है। हालांकि ये पर्व पहले कुमाऊं तक सीमित था, लेकिन अब इस पर्व के उपलक्ष्य में पौधरोपण का अभियान चलाया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दरअसल, लोक परंपराओं के अनुसार, पहले के समय में पहाड़ के लोग खेती पर ही निर्भर रहते थे। इसलिए सावन का महीना आने से पहले किसान ईष्ट देवों और प्रकृति से बेहतर फसल की कामना और पहाड़ों की रक्षा का आशीर्वाद मांगते थे। हरेला पर्व के साथ उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सावन की शुरुआत भी हो गई। ऐसे में मंदिरों में लोगों की भीड़ है, वहीं, जगह जगह घरों में हरियाली पूजन के साथ ही पौधरोपण का कार्यक्रम आयोजित किया जाल रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष श्री प्रीतम सिंह ने हरेला पर्व के अवसर देहरादून में किशननगर चैक स्थित आत्माराम धर्मशाला में पौधरोपण किया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड ने देश एवं विश्व के पर्यावरण की रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज जिस प्रकार हिमालय के ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं तथा हरियाली कम होती जा रही है, उसकी रक्षा के लिए सघन पौधरोपण कार्यक्रमों का आयोजन आवश्यक हैं। इस अवसर पर कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष लालचन्द शर्मा, पार्षद कोमल बोहरा, राजीव प्रजापति, पीयूश जोशी, संजय कनोजिया, मोहन जोशी, राजू बहुगुणा, विनय प्रजापति, चन्द्रभान आदि उपस्थित थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डोईवाला स्थित स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट में उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला के उपलक्ष्य पर ‘गो ग्रीन कैंपस’ अभियान चलाया गया। इस अवसर पर जामुन, लीची, आंवला, पीपल, हल्दु, अमल्तास, लैगस्ट्रोमिनिया, गुलमोहर आदि के करीब 100 से ज्यादा पौधों का रोपण किया। कुलाधिपति डॉ.विजय धसमाना ने अपने संदेश में कहा कि लोकपर्व हरेला प्रकृति पूजन व पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो ही मानव जाति का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा। कहा कि हरेला पर्व युवा पीढ़ी को भी अपनी जड़ों से जोड़ता है। आज का युवा जिस तरह से पुराने त्योहारों को भूलता चला जा रहा है, ऐसे में हरेला पर्व आज की युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम भी कर रहा है। अगर समय-समय पर ऐसे पर्व मनाते जाएं तो युवा भी अपनी संस्कृति व पर्वों के महत्व को समझ पाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पौधरोपण अभियान का शुभारंभ डॉ.विजेंद्र चौहान व डॉ.प्रकाश केशवया ने संयुक्त रुप से किया। उन्होंने विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्यों से आह्वान किया कि पर्यावरण संरक्षण व स्वच्छता को मूल कर्तव्य समझकर दूसरों को भी इस संबंध में जागरुक करें। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ.सुशीला शर्मा, बी.मैथिली, एस्टेट ऑफिसर अमरेन्द्र कुमार, रोशन नौगाईं, डॉ.आरएस सैनी, डॉ.विनीत महरोत्रा, चंद्रभूषण अंथवाल सहित आदि उपस्थित रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साल में तीन बार मनाया जाता है हरेला
हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है। तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है। उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है। जिससे 9 दिन पहले मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है। कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं। इस हरियाली (पौधों) को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड की संस्कृति से युवाओं जोड़ने के लिए होता है ये काम
अगर परिवार का बेटा या बेटी घर से बाहर होते हैं, तो कुछ लोग उनके पास यह हरेला डाक के माध्यम से भी भेजते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। पौधरोपण करने और पेड़-पौधों को सुरक्षित बड़ा करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।