मार्क्सवाद के जनक, अर्थशास्त्री और इतिहासकार कार्ल मार्क्स का जन्मदिवस आज, जानिए उनके सिद्धातों का समाज में प्रभाव
पूरी दुनिया को एक नई दिशा और सोच देने वाले कार्ल मार्क्स का आज पांच मई को जन्मदिवस है। जर्मनी के महान विचारक कार्ल मार्क्स को अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और क्रांतिकारी की उपाधि से जाना जाता है। कार्ल मार्क्स जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राजनीतिक सिद्धान्तवादी थे, जिन्होंने आधुनिक इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला। उनके समाजवाद, कम्युनिज्म और व्यापार के स्वभाव पर विचारों ने 20वीं शताब्दी की राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार दिया और आज भी राजनीतिक और आर्थिक विवादों पर प्रभाव डालते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मार्क्स का जीवन ही देता है इतिहास के प्रति सोच का जवाब
भारत में हाल ही में इतिहास की पुस्तकों में लेकर हुए बदलावों को लेकर खूब बहस होती दिखी। इसमें कुछ इतिहासकार जो मार्क्सवादी विचारधारा के माने जाते हैं, उन्होंने इतिहास को विकृत करने का आरोप लगाया तो इस वर्ग के इतिहासकारों पर ऐसे आरोप भी लगे कि उन्होंने भारतीय इतिहास की सही तस्वीर पेश नहीं की। यहां हम मार्क्स के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे। ताकि हमें पता चल सके कि इतिहास को लेकर मार्क्स का नजरिया क्या था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिता से मिली आरंभिक शिक्षा
कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म पांच मई 1818 को तत्कालीन पर्शिया निचले राइन प्रांत के पुराने शहर ट्रायर में हुआ था। मूल रूप से मार्क्स का परिवार गैरधार्मिक यहूदी था, लेकिन बाद में कार्ल के जन्म के पहले ही औपचारिक तौर पर ईसाई धर्म अपना चुका था। उनके पिता को परिवार में पहले व्यक्ति थे जिन्हें धर्मनिरपेक्ष शिक्षा मिली थी और पेशे से वे एक वकील थे। मार्क्स के बचपन के बारे में कम जानकारी है। नौ संतान में से वे अपनी पिता की तीसरी संतान थे। उन्होंने उनके पिता ने ही शुरुआती शिक्षा दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मार्क्स की मां एक धनवान परिवार से थीं। मार्क्स को घर पर शिक्षा दी गई थी। जब वे 12 साल के थे, तब उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाई शुरू की। बाद में उन्होंने बोन विश्वविद्यालय और बर्लिन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, जहां उन्होंने दर्शन, इतिहास और अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित किया। कार्ल मार्क्स ने जेना विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। साथ ही, उन्होंने वकालत की पढ़ाई भी की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बाद के दिनों में बन गए थे नास्तिक
बता दें कि कार्ल मार्क्स के माता-पिता यहूदी धर्म से आते थे। बाद में मार्क्स के पिता ने वकालत जारी रखने के लिए 1816 में यहूदी धर्म छोड़कर ईसाई धर्म की प्रमुख शाखा कहे जाने वाले लूथरानिज्म धर्म को अपना लिया। साथ ही छह वर्ष की उम्र में कार्ल मार्क्स को भी ईसाई धर्म में शामिल किया गया। हालांकि, काल मार्क्स बाद के दिनों में नास्तिक बन गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इतिहास का मार्क्सवादी नजरिया
इतिहास के बारे में मार्क्सवादी नजरिया यही है कि इतिहास सार्वभौमिक नियमों से संचालित होता है और इन्हीं नियमों के तहत ही समाज भी कई चरणों की शृंखलाओं से गुजरता है। इसमें विभिन्न चरणों के संक्रमण के दौरान वर्ग संघर्ष की स्थितियां भी देखने को मिलती हैं। मार्क्स के विचारों पर कहा जाता है कि उनकी सोच के मूल में इतिहास का बहुत महत्व था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
केवल एक पक्षीय नहीं हो सकता इतिहास
इतिहास बताता है कि हमें कैसे मानवता के पिछले अनुभवों से सीखना चाहिए और मानव सामाज की समझ कैसे भविष्य को आकार देने का काम करेगी। खुद मार्क्स इतिहास के तटस्थ भाव से देखने की पैरवी करते थे। उनका कहना था जैसे कि इंसान के पहनावे से उसके बारे में राय नहीं बनाई जा सकती, उसी तरह से कोई किसी काल के बदलाव को उसी की चेतना के जरिए नहीं समझ सकता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वैज्ञानिक अन्वेषण और विचारधाराओं से मुक्ति
मार्क्स तथ्यात्मक अन्वेषण और जानकारी पर आधारित इतिहास के पैरोकार माने जाते हैं। वे वैज्ञानिक पड़ताल और हीगल जैसे आधुनिक विचारकों की सोच से मिलकर बनए एक एकीकृत ढांचे के तहत इतिहास के अध्ययन पर जोर देते थे। यहां तक कि उन्होंने कई विचारक इतिहासकारों की आलोचना इसलिए भी की, क्योंकि उन्होंने या तो अपनी खुद की विचारधारा से या फिर उसी दौर की विचारधारा के आधार पर इतिहास की घटनाओं के नतीजे निकाले। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धांत
मार्क्स के इतिहास को लेकर नजरिए में सबसे बड़ा तत्व उसकी ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत की अवधारणा है, जो वास्तव में मार्क्स के समाज के बारे में सामान्य विचारों को प्रदर्शित करती है। मार्क्स के लिए सामाजिकता और उनके समाजवादी विचारों का आधार ही भौतिकवाद था, क्योंकि उनके हिसाब से भौतिक स्थितियां और आर्थिक कारक समाज की संरचना और विकास को प्रभावित करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्ल मार्क्स को कम उम्र से ही राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांत में गहरी दिलचस्पी थी। वह विशेष रूप से जर्मन दार्शनिक जॉर्ज विल्हेम फ्रेडरिक हेगेल के लेखन से प्रभावित थे, जिन्होंने तर्क दिया कि इतिहास विरोधी ताकतों के बीच संघर्षों की एक श्रृंखला से प्रेरित था। मार्क्स ने इतिहास का अपना सिद्धांत विकसित किया, जिसे उन्होंने ऐतिहासिक भौतिकवाद कहा। उनका मानना था कि आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां ऐतिहासिक परिवर्तन के प्राथमिक चालक थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समाज और उसकी संरचना
मार्क्स मानते थे कि इंसान के सामाजिक ताने बाने के निर्माण का आधार मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। यह उत्पादन द्वारा पूरी होती हैं जो इंसानों के समाज में रहने से हो पाता है। यानि मानव समाज उत्पादन के कारक और संबंधों के ताने बाने से ही निर्मित होता है। समाज की संरचना का आधार भी आर्थिक संरचना ही ही है। यहां तक कि मार्क्स ने मानव समाज के विकास के क्रमों को एक चरण से दूसरे चरण के जरिए इसी सिद्धांत के आधार पर निकाला था। उनके मुताबिक भौतिकवाद वास्तव में समाज की भौतिक संरचना ही होती है। इस लिहाज से मार्क्स का इतिहास के प्रति नजरिया भौतिकवादी कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये भी है रोचक जानकारी
एक रोचक बात जो कम लोग जानते हैं कि मार्क्स ने बहुत बाद में प्रिहिस्ट्री यानि प्रागैतिहास के अस्तित्व को पहचाना था। यानि मानव इतिहास का वह दौर जब वह भोजन का उत्पादन नहीं करता था, बल्कि उसे जमा करता था। इससे मार्क्स के दर्शन या विचारधारा का महत्व कम नहीं हो जाता है, बल्कि इससे पता चलता है कि वे ऐसा क्यों कहते थे कि अब तक के सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। यहां इतिहास से उनका अर्थ इतिहास के उसी हिस्से से था जब समाज बनना शुरू हो चुके थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समाजवादी विचारधारा के प्रणेता
कार्ल मार्क्स को समाजवाद के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। उनकी विचारधारा राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक बदलाव को लेकर थी। वे आर्थिक विकास को समाजवाद के माध्यम से समझते थे। कार्ल मार्क्स ने राजनीतिक विचारों के बारे में अपने काफी काम में लिखा है। उन्होंने अपने समय की धार्मिक और सामाजिक दबावों को उखाड़ फेंकने के लिए समाजवादी विचारधारा विकसित की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जरूरत को पूरा करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता
उनकी विचारधारा का मूल तत्व था कि शक्ति न केवल व्यक्तिगत या संस्थात्मक होती है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक होती है। वे इस बात को बताते थे कि समाज का आधार अपने काम करने वाले लोगों पर होता है, न कि उनके लोगों पर। इसलिए, उन्होंने समाज के सभी वर्गों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता को बताया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पूंजीवाद के आलोचक
मार्क्स पूंजीवाद के प्रबल आलोचक थे, जिसे उन्होंने एक अंतर्निहित शोषक व्यवस्था के रूप में देखा, जिसने असमानता और अन्याय को कायम रखा। उन्होंने तर्क दिया कि पूंजीपतियों ने श्रमिकों के श्रम का शोषण करके धन अर्जित किया, जिन्हें उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से कम भुगतान किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्ल मार्क्स के सिद्धांत
कार्ल मार्क्स साम्यवाद और समाजवाद पर अपने सिद्धांतों के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना था कि पूंजीवादी व्यवस्था स्वाभाविक रूप से त्रुटिपूर्ण थी और अंततः अपने ही पतन का कारण बनेगी। मार्क्स का मानना था कि शासक वर्ग ने सर्वहारा वर्ग (मजदूर वर्ग) का शोषण किया और यह शोषण अंततः एक क्रांति की ओर ले जाएगा। जहां सर्वहारा पूंजीपति वर्ग को उखाड़ फेंकेगा और एक समाजवादी समाज की स्थापना करेगा। एक समाजवादी समाज में, उत्पादन के साधन लोगों के स्वामित्व में होंगे, और लाभ समाज के सभी सदस्यों के बीच समान रूप से साझा किया जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साम्यवादी समाज से पहले पूंजीवाद का अंतिम चरण
मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिद्धांत ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां ऐतिहासिक परिवर्तन के प्राथमिक चालक हैं। उन्होंने तर्क दिया कि पूरे इतिहास में, सामंतवाद से पूंजीवाद तक, आर्थिक प्रणालियों की एक श्रृंखला के माध्यम से समाज विकसित हुए हैं। मार्क्स के अनुसार, साम्यवादी समाज के उभरने से पहले पूंजीवाद अंतिम चरण था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समाजवादी आंदोलन मार्क्स के विचारों से प्रेरित
मार्क्स का मानना था कि एक पूंजीवादी समाज में, उत्पादन के साधन (जैसे कारखाने और मशीनें) पूंजीपतियों के स्वामित्व में थे, जो माल का उत्पादन करने के लिए श्रमिकों को काम पर रखते थे। श्रमिकों को वेतन दिया जाता था, जो मार्क्स का मानना था कि उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के मूल्य से कम था। मार्क्स के सिद्धांतों का राजनीति और अर्थशास्त्र पर विशेष रूप से 20वीं शताब्दी में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। कई समाजवादी और साम्यवादी आंदोलन उनके विचारों से प्रभावित थे, और आज भी विद्वानों द्वारा उनके काम का अध्ययन और बहस जारी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दास कैपिटल अर्थव्यवस्था का महाग्रंथ
1864 में कार्ल मार्क्स ने अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना की। उन्होंने तीन साल बाद दास कैपिटल की पहली संस्करण प्रकाशित की। यह उनके आर्थिक सिद्धांतों पर सबसे बेहतरीन काम माना जाता है। उन्होंने इसमें बताया कि पूंजीवाद एक ऐसी व्यवस्था है, जो अपने विनाश और मार्क्सवाद की जीत के बीज अपने अंदर पाले हुए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
काल मार्क्स से जुड़े कुछ तथ्य
कार्ल मार्क्स ने 1835 में केवल 17 साल की उम्र में दर्शनशास्त्र और साहित्य पढ़ने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन में नामांकन लिया।
कार्ल मार्क्स ने पिता के कहने पर वकालत की पढ़ाई की। इसके बाद, मार्क्स ने उदारवादी लोकतांत्रिक समाचार पत्र रिनीश्चे जिटुंग में लिखना शुरू किया।
कार्ल मार्क्स 1842 रिनीश्चे जिटुंग का संपादक बने।
संपादक बनने के एक साल बाद, 1843 में मार्क्स अपनी पत्नी जेनी वॉन वेस्टफैलेन के साथ पेरिस चले गए।
पेरिस में मार्क्स की मुलाकात फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई।
1845 में काल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स ने मिलकर द होली फादर किताब लिखी।
1847 में मार्क्स और एंजेल्स को कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो लिखने को कहा गया, जो 1847 को बनकर तैयार हुआ।
वर्ष 1883 में काल मार्क्स का निधन हो गया।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।