उत्तराखंड के गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की जयंती आज, सीएम धामी ने दी श्रद्धांजलि, जानिए उनका सामाजिक योगदान

उत्तराखंड के गांधी, महान समाज सुधारक, लोकसंस्कृति प्रेमी और जीवट राज्य आंदोलनकारी और राज्य आंदोलन के प्रणेता स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की जयंती आज यानि कि 24 दिसंबर को है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी का उनकी जयन्ती पर भावपूर्ण स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पृथक उत्तराखंड राज्य निर्माण आन्दोलन में स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में उनके सक्रिय सहयोग को सदैव याद रखा जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वर्गीय इंद्रमणि बड़ोनी 1994 के राज्य आंदोलन के सूत्रधार रहे। वे देवभूमि के संस्कारों के अग्रदूत व पहाड़ के सच्चे हितैषी थे। पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिये उनकी संकल्पनाओं एवं राज्य निर्माण के संघर्ष में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्व. बड़ोनी जी की जयन्ती का अवसर हमें उत्तराखण्ड को विकसित एवं अग्रणी राज्य बनाने की भी प्रेरणा देता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जीवन परिचय
उत्तराखंड के गाँधी स्व. इन्द्रमणि बड़ोनी जी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को ग्राम अखोड़ी, पट्टी ग्यारह गाँव हिन्दाव टिहरी गढ़वाल में हुआ। इनकी माँ श्रीमती कल्दी देवी तथा पिताजी सुरेशानंद थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा कक्षा 4 (लोअर मिडिल) अखोड़ी से तथा कक्षा 7 (अपर मिडिल) रोडधार प्रतापनगर टिहरी से हुई। पिताजी का जल्दी ही निधन होने से इनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। प्रारम्भ में खेतीबाड़ी का काम करने के बाद वह रोजगार के लिए बॉम्बे चले गए। उच्च शिक्षा देहरादून व मसूरी से उन्होंने बहुत कठिनाइयों के बाद पूर्ण की। अपने दो छोटे भाई महीधर प्रसाद और मेधनिधर को उच्च शिक्षा दिलाने में पितृत्व का धर्म निर्वहन किया और स्वयं गाँव में ही अपने सामाजिक जीवन को विस्तार देना प्रारम्भ किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संस्कृति प्रेमी रहे इंद्रमणि बडोनी
अपनी रूचि के अनुसार खेतों में काम करने वाले आमजन के उत्साहवर्धन व मनोबल बढ़ाने के लिए इंद्रमणि बडोनी जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाने लगे। कई गाँव एवं प्रदर्शनियों में वीर भड़ माधोसिंह भण्डारी नृत्य-नाटिका और रामलीला के मंचन में उनका योगदान रहा। ऐसे में कहा जा सकता है कि पहाड़ के गाँधी एक अच्छे अभिनेता, निर्देशक, लेखक, गीतकार, गायक, हारमोनियम और तबले के जानकार के साथ-साथ नृतक भी थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लाहौर से संगीत की शिक्षा प्राप्त जबर सिंह नेगी को वे संगीत में अपना गुरु मानते थे। कहा जाता है कि वे लोक वाद्य बजाने में भी निपुण थे। इसका प्रमाण 1956 में मिलता है, जब राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड के अवसर पर इंद्रमणि बडोनी ने हिंदओ के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग और गिरज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का आयोजन किया था। साथ ही वे अपनी लोक कला को बड़े मंच पर ले जाने में सफल रहे। बड़ोनी सामाजिक व्यक्तित्व के साथ साथ बॉलीबाल के कुशल खिलाड़ी भी रहे। पहाड़ की शिक्षा के प्रति वे बहुत चिंतनशील रहते थे। उनके द्वारा जगह-जगह स्कूल खोलना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राजनीतिक सफर
-1953 में गांधी जी की शिष्या मीरा बेन मानवीय और शैक्षणिक यात्रा पर टिहरी गईं। जब मीरा अखोड़ी पहुँचीं, तो उन्होंने गाँव के एक शिक्षित और समझदार व्यक्ति से पूछा, जिसके साथ वे गाँव के विकास के लिए लाभकारी योजनाओं पर चर्चा कर सकें। बडोनी ने इस अवसर का लाभ उठाया और मीरा बेन की प्रेरणा से सामाजिक कार्यों में शामिल हो गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-1961 में इंद्रमणि बडोनी ग्राम प्रधान बने और उसके बाद विकास खंड जखोली के प्रमुख बने । वे 1967 में देवप्रयाग से पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने गए।
-1969 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुने गए और 1977 में वे लखनऊ विधानसभा के लिए स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने गए। 1977 की जनता पार्टी की लहर के दौरान भी वे इतने बड़े अंतर से जीते कि कांग्रेस और जनता पार्टी दोनों के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-हालांकि, बडोनी को अपने राजनीतिक करियर में असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। 1974 में वे गोविंद प्रसाद गैरोला से चुनाव हार गए और 1989 में वे ब्रह्मदत्त से संसदीय चुनाव हार गए। इन असफलताओं के बावजूद, बडोनी अलग उत्तराखंड राज्य के लिए गहराई से प्रतिबद्ध थे। वे 1979 से अलग राज्य के आंदोलन में सक्रिय थे और उन्होंने पार्वती विकास परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-1980 में बडोनी ने उत्तर प्रदेश से अलग पहाड़ी राज्य बनाने के उद्देश्य से गठित एक नव स्थापित क्षेत्रीय राजनीतिक दल उत्तराखंड क्रांति दल से हाथ मिलाया और जीवन भर इसके सक्रिय सदस्य बने रहे। उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्रित्व काल में वे पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-बडोनी ने 1989 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। इस चुनाव में बडोनी दस हज़ार वोटों से हार गए थे। कहा जाता है कि नामांकन दाखिल करते समय बडोनी की जेब में सिर्फ़ एक रुपया था, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ब्रह्मदत्त ने अपने प्रचार पर लाखों रुपए खर्च किए थे।
-शिक्षा क्षेत्र में कार्य करते हुए बडोनी ने गढ़वाल में कई विद्यालय खोले, जिनमें इंटरमीडिएट कॉलेज कठूड़, मगधार, धुतु और हायर सेकेंडरी स्कूल बुगालीधार प्रमुख हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड आंदोलन और बडोनी
1988 में बडोनी ने उत्तराखंड क्रांति दल के बैनर तले 105 दिनों की पदयात्रा की। यह पदयात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली। उन्होंने गांव में घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताए। 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-1994 में, बडोनी ने अलग उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए पौड़ी में आमरण अनशन शुरू किया। सात अगस्त को, उन्हें जबरन ले जाया गया और मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और वहाँ से उन्हें जनता की नज़रों से दूर रखने के प्रयास में एम्स, दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया। उनकी गिरफ़्तारी से उनके अनुयायी भड़क गए और जगह जगह लोग अनशन पर बैठने लगे। आंदोलन ने और गति पकड़ी जिसके परिणामस्वरूप उनके निधन के एक साल बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड का निर्माण हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-उसके बाद 02 सितम्बर और 02 अक्टूबर का काला इतिहास घटित हुआ। उत्तराखंड आंदोलन के कई मोड़ आये, पूरे आन्दोलन में वे केन्द्रीय भूमिका में रहे। बहुत ज्यादा धड़ों और खेमों में बंटे आंदोलनकारियों का उन्होंने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। 18 अगस्त 1999 में विट्ठल आश्रम ऋषिकेश में उन्होंने अन्तिम साँस ली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
-अहिंसक आंदोलन में उनकी अटूट आस्था और उनके करिश्माई लेकिन सहज व्यक्तित्व के कारण , द वाशिंगटन पोस्ट ने बडोनी को “माउंटेन गांधी” के नाम से संबोधित किया। 18 अगस्त, 1999 को ऋषिकेश के विट्ठल आश्रम में उनका निधन हो गया । अपने पूरे जीवन में चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, बडोनी उत्तराखंड के इतिहास में एक सम्मानित और प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उनके अन्य योगदान के बारे में
1938 में तत्कालीन व्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने व अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के आंदोलन का समर्थन किया। तत्पश्चात 1940 हल्द्वानी सम्मेलन, 1954 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंदबल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिए पृथक विकास योजना का आग्रह किया। 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी टी कृष्णमाचारी को पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिए विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया। 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिए राज्य व केन्द्र सरकार के दायित्व की घोषणा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूकेडी की स्थापना में योगदान
1979 को पृथक राज्य के गठन के लिए मसूरी में इंद्रमणि बडोनी ने उत्तराखंड क्रान्ति दल की स्थापना की। 1987 में कर्णप्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखंड के गठन के लिए संघर्ष का आह्वान के बाद वर्ष 1994 में राज्य बनने के लिए सबसे बड़ा संघर्ष किया गया। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के तत्वावधान में 02 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए उत्तराखंड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। आंदोलनकारियों को मुज्जफरनगर में बहुत प्रताड़ित किया गया, उन पर पुलिस ने गोलीबारी व लाठियां बरसाई, महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता की। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए, इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन की आग में घी का काम किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हुए थे गोलीकांड
-एक सितंबर 1994- खटीमा गोली कांड: 7 लोग शहीद।
– दो सितंबर 1994- मसूरी गोलीकांड: 6 लोग शहीद।
– दो अक्टूबर 1994-मुज्जफरनगर गोलीकांड: 07 लोग शहीद।
इसके बाद
– देहरादून गोलीकांड: 03 लोग शहीद।
– कोटद्वार गोलीकांड: 02 लोग शहीद।
– नैनीताल गोलीकांड: 01 शहीद।
– श्रीयंत्र टापू श्रीनगर गढ़वाल में 02 लोग शहीद। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पीएम एचडी देवगौड़ा ने की थी उत्तराखंड की घोषणा
इस प्रकार की इन उग्र घटनाओं के बाद 27 अक्टूबर 1994 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आंदोलनकारियों से वार्ता हुई और 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा लाल किले से की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नए राज्य के गठन के लिए इस तरह चली प्रक्रिया
1998 में भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तर प्रदेश विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा। उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 संशोधन के साथ उत्तरांचल विधेयक विधानसभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो 01 अगस्त 2000 लोकसभा तथा 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त 2000 को अपनी स्वीकृति दी। फिर यह 9 नवंबर 2000 को अधिनियम में बदल गया और नया राज्य उत्तरांचल भारत के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। अब उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।