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December 13, 2024

समय बीता, गुस्सा हुआ शांत, लेकिन कम नहीं हुई खुदगर्जी, मां और एकलौते बेटे की कहानी

देहरादून में राजपुर रोड स्थित एक होटल के लॉन में लगे पंडाल में डीजे बज रहा था। भीतर वैडिंग चेयर में बैठे दुल्हा व दुल्हन को लोग आशीर्वाद दे रहे थे। दूल्हे के रूप में विवेक ने शानदार सफेद सूट पहना हुआ था।

देहरादून में राजपुर रोड स्थित एक होटल के लॉन में लगे पंडाल में डीजे बज रहा था। भीतर वैडिंग चेयर में बैठे दुल्हा व दुल्हन को लोग आशीर्वाद दे रहे थे। दूल्हे के रूप में विवेक ने शानदार सफेद सूट पहना हुआ था। वहीं दुल्हन मोनू पिंक लहंगे में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी नजर र्आ रही थी। जो भी मेहमान आते वे इस जोड़े को देखकर सुमंतो मुखर्जी को बधाई देते और कहते कि- वाह भाई आपने लड़की के अनुरूप ही सुंदर लड़का तलाशा है। सुमंतो व उनकी पत्नी सोनम मेहमानों से खाना खाने को जरूर पूछते। कहते कि बगैर खाए मत जाना। डीजे के संगीत में कुछ बच्चे व युवा डांस भी कर रहे थे। सुमंतो मुखर्जी की यह तीसरी बेटी की शादी थी। दो बेटी पहली पत्नी से थी। पत्नी चल बसी तो उन्होंने दूसरी शादी की। दूसरी पत्नी सोनम सरकारी नौकरी में थी। जब उन्होंने दूसरी शादी की तो एक बेटी दस साल की थी और दूसरी आठ की। सुमंतो खुद बिजनेस करते थे। मजे में कट रही थी। पैसों की कमी नहीं थी।
सोनम ने सोतेली बेटियों को भी सगी मां की तरह प्यार दिया। दोनों बेटियों की शादी समय से कर दी गई। सोनम ने भी बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम मोनू रखा गया। मोनू की शादी भी धूमधाम से होटल में की जा रही थी। मोनू ने अपने लिए खुद ही लड़का तलाशा था। वह उसके बचपन का साथी विवेक था। दोनों की दोस्ती इतनी बड़ी कि दोनों ने साथ साथ जीने की कसमें खाई। सुमंतो मुखर्जी व उनकी पत्नी ने भी विवेक को दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया। क्योंकि वह मर्चेंट नेवी में अच्छी जोब में था।
विवाह सामारोह में मेहमान बढ़ते जा रहे थे। चारों तरफ चहल-पहल थी। इसी बीच करीब छह सात महिलाओं का एक जत्था विवाह स्थल पर पहुंच गया। उसे देखते ही सुमंतो मुखर्जी व उनकी पत्नी को मानो सांप सूंघ गया। दोनों एक कोने में खड़े हो गए। महिलाएं मंच के पास दुल्हा व दुल्हन के पास पहुंची। उनमें से एक पतली-दुबली व लंबी कद काठी की महिला विवेक के सामने खड़ी हो गई। शादी में पहुंची यह महिला घर के साधारण कपड़ों में ही थी। पूरे पंडाल में लोगों में सन्नाटा सा छा गया। हालांकि तब भी डीजे बज रहा था।
महिला ने विवेक को कंधे से पकड़कर झंझोड़ा। उसके चेहरे पर थप्पड़ों की बरसात सी कर दी। सिर के बाल पकड़कर उसे मंच से नीचे घसीटा। जो लोग महिला को जानते नहीं थे, वे बीच-बचाव को आगे आने को हुए, लेकिन उन्हें दूसरे लोगों ने इशारा कर रोक दिया। विवेक चुपचाप किसी अपराधी की तरह मार खाता चला गया। जब महिला थक गई तो उसने जमीन से एक चुटकी मिट्टी उठाई और विवेक के ऊपर फेंकते हुए बोली-मेरे लिए आज से तू मर गया। यह कहते हुए वह अन्य महिलाओं के साथ रोती हुई वापस चली गई। विवाह समारोह में उत्पात मचाने वाली महिला को जो लोग नहीं जानते थे, ऐसे एक व्यक्ति ने दूसरे से पूछा।
-यह औरत कौन है और क्या माजरा है।
-यह दूल्हे की मां है, जो इस विवाह से खुश नहीं थी। उसकी मर्जी के खिलाफ ही चुपचाप से यह शादी हो रही थी। दूसरे ने जवाब दिया।
कमला का मन न तो खाने का कर रहा था और न ही उसे नींद ही आ रही थी। रात के नौ बज चुके थे और उसने चूल्हा तक नहीं जलाया। फिर उसे याद आया कि वह पति को क्यों सजा दे रही है। उसे तो खाना बना देना चाहिए। वह उठी और रसोई में चली गई। तभी पति गोविंद ने कमला से कहा- मुझे भूख नहीं है, मेरा खाना मत बनाना।
-क्यों आपकी भूख कहां उड़ गई, बेटा भी तो आपकी तरह ही अपनी मनमर्जी का है। पहले आपने मुझे कष्ट दिया अब बेटा दे रहा है।
-क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ती हो। पुरानी बातों को भूल जाओ-गोविंद बोला
-कैसे भूल सकती हूं, खैर हम क्यों भूखे रहें, बेटे ने तो दावत उड़ाई तो हम क्यों खाली पेट रहें। कब तक भूखे रहेंगे। मैं मेगी बनाती हूं। उसी से गुजारा कर लेंगे।
कमला ने मेगी बनाई, पति और अपने लिए भी कटोरी में डाली। पति ने तो खा ली, लेकिन वह दो चम्मच भी हलक से नीचे नहीं उतार सकी। फिर कुछ देर बाद बर्तन धोकर बिस्तर में लेट गई।
बिस्तर में लेटने के बाद नींद किसे थी। उसकी आंखों में पुरानी यादें ताजा हो रही थी। पुराने घाव दिल में हरे होने लगे। विवाह के बाद सबकुछ ठीकठाक चल रहा था। पति गोविंद की प्राइवेट फर्म में नौकरी थी और वह सरकारी संस्थान के हॉस्टल में कार्यरत थी। बड़ी बेटी हुई, जिसका नाम बीना रखा। फिर बेटे ने जन्म लिया जिसका नाम विवेक रखा गया। जब बच्चों को मां-बाप के दुलार की जरूरत थी, तब कमला की किस्मत फूट गई। पति छोटे बच्चों को छोड़कर घर से भाग गया। वह किसी दूसरी महिला के मोहपाश में बंध गया। कमला ही दोनों बच्चों की परवरिश कर रही थी। अच्छे स्कूल में पढ़ाया। मुसीबत के वक्त कमला के देवर ने हर सुख-दुख में उसका साथ दिया। विवेक को लेकर कमला ने कई सपने बुने हुए थे। वह उसके बुढ़ापे का सहारा जो बनता। विवेक भी मां का लाडला था। मां को भी अपने बेटे पर गर्व था।
बच्चे युवा हुए फिर जवान। बीना की शादी एक बिल्डर से करा दी गई। वह ससुराल में खुश थी। विवेक की नौकरी एक शिप कंपनी में लग गई। वह छह माह या एक साल में घर आता। ढेरों गिफ्ट मां व बहन के लिए भी लाता। कमला ने देखा कि विवेक का झुकाव मोहल्ले में ही रहने वाले बंगाली परिवार की मोनू से हो रहा है। वह उसे सचेत करती और कहती कि उसके लिए नेपाली लड़की तलाश रही है। पर विवेक ने कुछ और ही ठान रखा था।
विवेक को यह पता था कि उसकी मां कभी भी उसे मर्जी से शादी करने नहीं देगी। वहीं मोनू के माता-पिता यही चाहते थे कि बुढापे में उनका सहारा मोनू व विवेक बनें। ऐसे में विवेक दो घरों की एकसाथ जिम्मेदारी कैसे उठा सकता है, यही बात उसे उलझाए रखती। वह ऐसी पक्की व्यवस्था करना चाहता था, जिससे उसकी मां अकेली न पड़े। जिस विवेक ने अपने पिता को अपनी याददाश्त में कभी नहीं देखा। जो पिता बेटे, बेटी व पत्नी की सुध लेने कभी नहीं आया। उसे एक दिन विवेक ने तलाश ही लिया। इस काम में विवेक की मदद उसके चाचा मेत्रू ने की। गोविंद जिस महिला के साथ रहता था, वह भी मर चुकी थी। ऐसे में घर वापसी में उसे कोई दिक्कत नहीं आई। फिर से कमला का परिवार भरा-पूरा हो गया।
कमला को अब यह रहस्य भी साफ-साफ समझ आ गया कि आखिरकार विवेक को 24 साल की उम्र में पिता प्रेम क्यों जागा। शायद इसलिए ही वह अपने पिता को तलाश कर घर वापस लाया कि वह खुद घर छोड़ना चाह रहा था। बेचारी कमला अभागी ही रही। पहले पति के व्योग में दिन काटे अब उसे बेटे के व्योग में दिन काटने की आदत डालनी थी। क्योंकि बेटा तो दूसरे घर में जाकर घर जवांई हो गया था।
सार दर साल बीतते जले गए। मां के मन का गुस्सा भी कुछ शांति हुआ। वह अलग ही किराए के मकान में अकेली रह रही थी। वहीं, विवेक ससुराल में ही रह रहा था। उसके ससुर, सास भी इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। वहीं, पिता भी चल बसे। कमला को उसने अपने साथ लाने की कोशिश की, लेकिन वह उसके साथ नहीं गई और उसने आस पड़ोस के लोगों को ही अपना परिवार मान लिया। हालांकि मां का बेटे के प्रति गुस्सा तो शांत हो गई, लेकिन उसके भीतर की खुदगर्जी नहीं गई। वह बेटे के पास नहीं गई और न ही बेटा उसके साथ किराए के मकान में आया। बुढ़ावे की पेंशन से वह गुजारा कर रही है। वह अकेले में खुश है या फिर हर रात उसकी बेटे के व्योग में जागते हुए कटती है….
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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