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December 19, 2024

भाजपा विधायकों का तैयार हो रहा रिपोर्ट कार्ड, आगामी चुनाव में कई के कटेंगे टिकट, नए चेहरे हो सकते हैं पार्टी में शामिल

आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा दोबारा जीत का इतिहास दोहराने के लिए हर संभव कोशिश में लगी है। इसके तहत माना जा रहा है कि चुनाव में पार्टी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती है।

आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा दोबारा जीत का इतिहास दोहराने के लिए हर संभव कोशिश में लगी है। इसके तहत माना जा रहा है कि चुनाव में पार्टी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती है। ऐसे में भाजपा विधायकों के कामकाज का सर्वे कराया जा रहा है। प्रदर्शन के आधार पर ही उन्हें रिपीट किया जा सकता है। अन्यथा उनके स्थान पर दूसरे जिताऊ नेता पर भाजपा दाव अपना सकती है। ऐसे में इन दिनों सभी विधायक अपना रिकॉर्ड सुधारने की जुगत में लग गए हैं।
उत्तराखंड में बीस साल के इतिहास में मतदाताओं ने किसी एक दल को लगातार दूसरी बार सत्ता में आने का मौका नहीं दिया। एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस सत्ता में काबिज होती रही। अब तीसरा ध्रुव आम आदमी पार्टी के रूप में भी उभरकर सामने आ रहा है। इससे दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस को बराबर के नुकसान की संभावना है। क्योंकि आम आदमी पार्टी में वरिष्ठ नेता कर्नल कोठियाल खुद को सक्रिय बनाए हुए हैं। वे गांव व शहरों में जाकर युवाओं, महिलाओं और आमजन से संवाद कर रहे हैं। ऐसे में उनके इन दौरे का असर यदि चुनाव में पड़ता है तो वे पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के वोट पर सेंध मार सकते हैं। ये वोट अभी तक भाजपा की झोली में जा रहा थे।
वहीं, आप ने अपना कुनबा बढ़ाया तो कांग्रेस के भी निचले स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं में सेंध मारी और उन्हें पार्टी में शामिल किया। ऐसे में कांग्रेस को भी आप से ही नुकसान पहुंचने की संभावना है। भाजपा चुनाव में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत 57 सीटों के रूप में मिला था। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे 57 विधायकों के प्रचंड बहुमत में भाजपा का मत प्रतिशत 46.5 के आसपास था जो उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस से लगभग 13 फीसद अधिक था। अब इसे दोहराना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
कारण ये भी है कि कोरोना की दूसरी लहर में भाजपा की देशभर में जो किरकिरी हुई, उससे उत्तराखंड भी अछूता नहीं रहा। यहां मार्च माह में पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया गया। फिर उनके स्थान पर बनाए गए सीएम तीरथ सिंह रावत को भी इस्तीफा देना पड़ा। विपक्ष सीएम बदलने को लेकर भाजपा को लगातार घेर रहा है। वहीं, अब तीसरे सीएम के रूप में पुष्कर सिंह धामी के पास भी काम करने के कुछ ही दिन बचे हैं। क्योंकि बहुत जल्द चुनाव आचार संहिता लग जाएगी और उनके सारे प्लान अगली सरकार के हवाले हो जाएंगे। ऐसे में अब चुनाव को लेकर भाजपा ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है।
बदले जा सकते हैं प्रदेश अध्यक्ष
माना जा रहा है कि बहुत जल्द भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं। या फिर कांग्रेस की तर्ज पर कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। क्योंकि सीएम धामी कुमाऊं मंडल से हैं। प्रदेश अध्यक्ष हरिद्वार से होने के कारण मैदानी क्षेत्र के हैं। ऐसे में गढ़वाल को बैलेंस करने के लिए संगठन ऐसा कदम उठा सकता है। इसके लिए हाल ही में चर्चा तेज हुई, लेकिन फिलहाल ठंडे बस्ते में है।
कराया जा रहा है सर्वे
अब भाजपा विधायकों का गोपनीय तरीके से सर्वे कराया जा रहा है। उसमें विधायकों के साढ़े चार साल के रिपोर्ट कार्ड को देखा जा रहा है। साथ ही कार्यकर्ताओं और जनता के बीच उनकी पकड़ का आंकलन भी संगठन में चल रहा है। ऐसे में तय है कि खराब रिपोर्ट कार्ड वाले विधायकों को अगली बार टिकट न मिले। उनके स्थान पर जिताऊ व्यक्ति को ही टिकट मिलेगा। साथ ही टिकट देने में उम्र का ध्यान भी रखा जाएगा। क्योंकि भाजपा उम्र दराज नेताओं को किनारे करने में लगी है। ऐसे में चुनाव से ऐन पहले भाजपा के उम्र दराज नेता दूसरे दलों की ओर रुख भी कर सकते हैं।
इन सीटों पर रहेगी नजर
खराब रिपोर्ट वाले विधायकों के स्थान पर पार्टी में दूसरे दलों से भी जिताऊ प्रत्याशियों को खींचा जा सकता है। इनके अलावा भाजपा शीर्ष नेतृत्व दिवंगत विधायक प्रकाश पंत, सुरेंद्र सिंह जीना, गोपाल रावत एवं मगनलाल शाह की सीटों पर भी नजर बनाए हुए हैं। भाजपा विधायकों के टिकट काटने प्रयोग गुजरा में कई बार कर चुकी है। ऐसा फार्मूला उत्तराखंड में भी अपनाया जा सकता है। वहीं, भाजपा विधायकों को भी लगता है कि जब नॉन परफॉर्मेंस के आधार पर मुख्यमंत्रियों को हटाया जा सकता है तो किसी विधायक को टिकट ना देना या सीट खाली कराना शीर्ष नेतृत्व के लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
ये रहेंगी चुनौती
भाजपा शीर्ष नेतृत्व की यह कवायद क्या रंग दिखाती है, ये तो चुनाव नतीजों के बाद पता चलेगा। क्योंकि भाजपा शीर्ष के नेतृत्व के सामने केंद्र एवं राज्य सरकार की एंटी इनकंबेंसी, राज्य नेतृत्व की ओर से भू कानून पर उठ रहे आंदोलन, देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी, बार बार सीएम का चेहरा बदलने पर आम जनता के बीच गया संदेश, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में नाकामी, कोरोना टेस्ट घोटाला आदि तमाम ऐसी चुनौतियां हैं, जिसे पार पाना भाजपा के लिए अलादीन का चिराग रगड़ने जैसा होगा।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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