ललित मोहन गहतोड़ी की तीन लघु कुमाऊंनी कविता
धुंगार…
चार दिनैकि ज्यूदि पराणि
द्वि दिन दुखाका दुख्यारि
बचि खुचि बीचै द्वि दिन
राजिखुशि जिया पिठि भाई
उठि बैठी पेटकोवा पड़ै
होस लौटछि छौंकै छाई
घ्यूं समझ सरसों तेलकि
धुंगार सबलै लगाई हाई (अगले पैरे में देखें दूसरी कविता)
कूनैयु…
मीठो बोल अनमोल कुनैयु…
हीरा मोती, मोल कूनैयु…
आदमी छै तू, आदमी रैये…
आदमी रौलै, फैद कूनैयु…
अकड़ देखौन हद रैज कूनैयु…
मिलिजुलि रयो भल मैंस कूनैयु…
एकल्वै भाजलै, जानि दुख पालै…
एकलै चानैकि, कभै नै खैर कूनैयु… (अगले पैरे में देखें तीसरी कविता)
कल्लीण…
मतारि बाबू कै, फुटि आंख नै देखन
भाई बंधु रिश्त आब, क्वै लै नै पुछन
अपना मनैक कस, मैंस है गयी बलौ
कुलों में कल्लीण, जस पैद हैगीं बलौ
रचनाकार का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।