चुनावी साल में फिर शुरू हुई तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट, क्षेत्रीय संगठनों ने मिलाए सुर
हर बार के चुनाव की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव निकट आने पर उत्तराखंड में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट फिर से शुरू हो गई।
बैठक में उत्तराखंड में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं को लेकर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि जिस उद्देश्य से आंदोलनकारियों ने राज्य की लड़ाई लड़ी, वो पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। विकास से पर्वतीय क्षेत्र आज भी दूर हैं। गैरसैंण को स्थाई राजधानी तक नहीं बनाया गया। बीस साल में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सरकारों ने प्रदेश की जनता को छलने के अलावा कुछ नहीं किया। ऐसे में स्थानीय दल, जन संगठन यदि एक होकर अगले साल विधानसभा चुनाव लड़ेंगे तो कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही मात दी जा सकती है।
शंकर सुरेन्द्र सिंह पांगती की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य के ज्वलन्त मुददों पर भी चर्चा की गई। साथ ही वक्ताओं ने सयुंक्त संघर्ष की रूप रेखा तय की। आंदोलनकारी नेताओं ने स्थानीय युवाओं को रोजगार देने वकालत की। वहीं परिसीमन व भू कानून पर चर्चा करते हुए एसएस पांगती ने कहा कि बिना मुद्दों की संवैधानिक समझ के बात करना बेईमानी होगा। उन्होंने दावे के साथ कहा राज्य में 371 धारा लगना असम्भव है।
बैतजक में पांगती की लिखित धर्म पुस्तिका अध्यात्म और व्यास ऋषि का भी विमोचन किया गया। बैठक को पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष ब्रिगेडियर विनोद पसबोला, तिल्लू रौतेली सेना की सुजाता पॉल व विनीता नेगी, प्रमिला रावत, कर्मचारी नेता बीपी ममगाईं, नवनीत गुसाईं, केएस रावत, सोमेश बुड़ाकोटी, प्रदीप कुकरेती, जगमोहन नेगी, गुरुचरण चौहान, ललित भट्ट, कमांडेंट मूर्ती सजवाण, रमेश बलूनी, मोहन नेगी, अनिल बलूनी आदि ने भी संबोधित किया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
जैसे ही चुनाव की औपचारिक घोषणा होगी सब अपने अपने दाम लगवाने लगेंगे और जो भी इनकी माकूल कीमत दे देगा अपनी तूती बजाना बन्द कर देंगे। इस समय तो मंडी में बैठने की तैयारी चल रही है देखिए कितने समूह सामने आते हैं कि हम भी हैं।