अपनी पार्टी में नहीं रहा सामंजस्य, नेता प्रतिपक्ष के सुझाव का कांग्रेस नेता ने कर दिया विरोध, सरकार की निंदा
अब कांग्रेस के नेताओं को देखिए। अपनी पार्टी में क्या चल रहा है, इसका पता नहीं और कर दिया निंदा का बयान जारी। गैरसैंण की बजाय देहरादून में विधानसभा का सत्र आयोजित करने की कड़ी निंदा कर दी। साथ ही सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की।

विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के अनुसार बीते रोज नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और संसदीय कार्यमंत्री बंशीधर भगत ने सुझाव दिया था कि सत्र देहरादून में ही हो। उन्होंने बताया कि इस संबंध में मुख्यमंत्री को अवगत करा दिया गया है। सत्र की तिथि और स्थान के बारे में निर्णय सरकार को लेना है। सरकार जहां भी कहेगी, विधानसभा सत्र कराने को हम तैयार हैं।
गौरतलब है कि पूर्व में विधानसभा का सत्र 29 और 30 नवंबर को गैरसैंण में आयोजित करने का निर्णय लिया गया था, जिसे बाद में टाल दिया गया। फिर ये बात हुई कि सत्र आठ व नौ दिसंबर को होगा, लेकिन तिथि अभी तक फाइनल नहीं हो पाई है। अब सत्र अब नौ और 10 दिसंबर को ही देहरादून में आयोजित किया जा सकता है।
गैरसैण में विधानसभा सत्र रद्द किए जाने की धीरेंद्र प्रताप ने की निंदा
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने एक प्रेस बयान जारी करते हुए आगामी 9 और 10 दिसंबर को गैरसेंण में होने वाले विधानसभा सत्र को राज्य सरकार की ओर से रद्द किए जाने के फैसले की कड़ी निंदा की। इसमें कहा गया है कि गैरसैंण सत्र को देहरादून में आयोजित किए जाने के फैसले को राज्य आंदोलनकारियों के सपनों को आघात पहुंचाने वाला कदम है। प्रताप ने कहा है कि राज्य आंदोलनकारियों ने गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर लंबा संघर्ष किया था, परंतु अब राज्य सरकार वहां 2 दिन के लिए भी सत्र करने को तैयार नहीं है।
उन्होंने सरकार के इस फैसले को गांव विरोधी और पहाड़ विरोधी फैसला बताया और कहा कि राज्य के साढ़े सोलह हजार गांव की खुशहाली के लिए गैरसेंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग राज्य आंदोलनकारियों ने की थी। यही नहीं राज्य के पर्वतीय अंचलों में विकास की नई रोशनी आए यह सपना भी आंदोलनकारियों ने देखा था। परंतु बार-बार सरकार द्वारा गैरसेंण में आंदोलनकारी सत्र आयोजित किए जाने की घोषणा किया जाना और बार-बार उसे वापस लेकर देहरादून में ही विधानसभा सत्र आयोजित किया जाना यह साबित करता है कि राज्य सरकार राज्य के पर्वतीय अंचलों के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन और नेपाल की सीमा से गिरे इस प्रांत में जब चीन बारंबार अतिक्रमण का प्रयास कर रहा है, राज्य सरकार के द्वारा इस तरह के कदम उठाए जाने से भारत राज की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों को भी झटका लगता है। उन्होंने राज्य सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है।