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September 29, 2025

इस राह में हर कदम पर हैं धोखे, फिर कैसे मिलेंगे अभिनेता बनने के मौके, एक स्क्रीन टेस्ट सिखा गया कई अनुभव

चारों तरफ अंधेरे के बीज बोए हुए हैं। अंधेरे की ही फसल उगती है और इस अंधेरे में जो जागता रहता है, शायद वही कुछ मुकाम हासिल करने में सफल हो सकता है।

कहते हैं कि जब व्यक्ति को ठोकर लगती है, तभी वह संभलता है। इस जीवन की रीत ही यही है। यहां तो हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा है। चारों तरफ अंधेरे के बीज बोए हुए हैं। अंधेरे की ही फसल उगती है और इस अंधेरे में जो जागता रहता है, शायद वही कुछ मुकाम हासिल करने में सफल हो सकता है। फिर भी हर राह धोखे से भरी है। किसी भी राह में आप कदम रखोगे तो वहां ऐसे लोगों की भरमार मिल जाएगी, जो उस्तरा लेकर आपकी गर्दन रेतने को हमेशा तैयार रहेंगे। ऐसे में आपका ऐसे लोगों से कहीं न कहीं वास्ता जरूर पड़ेगा, जिसकी ठगी का आप शिकार हो जाएंगे। हो सकता है कि कभी कभार आप अपनी सूझबूझ से राह के कांटे निकाल लें। क्योंकि जीवन में ऐसे क्षण अक्सर आते रहते हैं।
किशोर अवस्था से युवा अवस्था पर कदम रखने के दौरान व्यक्ति कुछ ज्यादा आत्मविश्वासी होता है। वह अक्सर सपने देखता है और उसे साकार करने की भी चेष्टा करता है। आजकल के ज्यादातर युवा खिलाड़ी व फिल्म अभिनेता से ही प्रभावित रहते हैं। वे उनकी तरह ही दिखना और बनना चाहते हैं। जब मैं युवावस्था की दहलीज में कदम रख रहा था तो मैं भी फिल्म अभिनेताओं से खासा प्रभावित रहता था। उन दिनों युवाओं में अमिताभ बच्चन का ही क्रेज था। मैं भी अक्सर सोचता कि काश किसी फिल्म निर्देशक की नजर मुझ पर पड़ जाए और मैं भी बतौर अभिनेता किसी फिल्म में नजर आऊं। बस एक बार मौका मिलेगा तो मैं अपनी मेहनत के बल पर पहचान बना लूंगा। फिर तो सभी की छुट्टी कर दूंगा और अपना डंका बजा दूंगा। शेखचिल्ली की तरह सपने देखना मुझे काफी अच्छा लगता था। सपने नहीं ख्वाब, जो मैं अक्सर जागते हुए देखता था।
देहरादून में डीएवी इंटर कॉलेज करनपुर से मैने 12 वीं की परीक्षा दी। एक दिन समाचार पत्र में मैने एक विज्ञापन देखा। उसमें लिखा था कि- हमें अपनी हिंदी फीचर फिल्म, प्यार इसी को कहते हैं, के लिए नए चेहरों की तलाश है। इस पते पर अपनी फोटो के साथ आवेदन भेजें। नीचे पता अंबाला शहर का था। मैने भी विज्ञापन पढ़कर अपनी फोटो के साथ आवेदन कर दिया। आवेदन करने के बाद से ही मुझे लगा जैसे में अभिनेता बन गया। मैं हर सुबह से शाम तक ख्वाब देखने लगता। मैने छोटी-छोटी हास्य स्क्रीप्ट लिखी और उसका अभिनय करने की रिहर्लसल करने लगा। कुछएक आयटम मैने तैयार कर लिए।
अक्सर मैं अपनी बहनों व पड़ोस के साथियों को अपना अभिनय दिखाता। अभिनय का मुझे ज्यादा ज्ञान नहीं था। कहां डायलाग कैसे बोलने हैं, आवाज को कहां दबाना है और कहां उठाना है। इसका मुझे अंदाज तक नहीं था। फिर भी मैं यही समझता कि मैं ही बेहतर कर रहा हूं। एक दिन मुझे अंबाला की फिल्म कंपनी की तरफ से पत्र आया कि मेरा आवेदन स्वीकार कर लिया गया है। अब मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए वहां जाना था। टेस्ट की तारिख भी पत्र में दी गई थी।
पत्र मिलते ही मेरा तो दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया। मैंने अभिनय का अभ्यास और अधिक कर दिया। देर रात बिस्तर से उठकर मैं डायलॉग बुदबुदाने लगता। अब मैने अपने पहनावे, हेयर स्टाइल आदि पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया। बाल अमिताभ बच्चन स्टाइल में ही थे। शरीर मेरा पतला था। दोनों कान को ढके हुए गर्दन तक काफी लंबे बाल मेरे सिर पर ऐसे नजर आते जैसे मैने विग पहना हुआ है।
इसी दौरान एक दिन मैं बाजार से राशन लेकर साइकिल से घर जा रहा था। सड़क किनारे एक पेड की छांव पर दो साधु बैठे थे। एक साधु ने मेरी तरफ इशारा किया। मुझे वह साधु बड़ा महात्मा नजर आ रहा था। लगा कि वह मेरा भूत, वर्तमान व भविष्य बता देगा। वह बोलेगा कि मेरा भाग्य चमकने वाला है। मैं एक स्टार बनने वाला हूं। ऐसे में मैं साधु के निकट पहुंचा। साइकिल खड़ी की और बोला- बाबा क्यों बुला रहे हो। साधु ने कहा कि बाबा को चाय पीनी है। पांच रुपये दे। तब शायद एक रुपये में चाय की पियाली मिलती थी।
मैने कहा कि बाबा मेरे पर पांच रुपये खुले नहीं है। सौ का नोट है, वो भी राशन के पैसे चुकाने के बाद बचा है। उसे पिताजी को देकर हिसाब बताना है। बाबा ने कहा कि वह पांच रुपये खोल देगा सौ का नोट दे। मैने उसे सौ का नोट थमा दिया। बाबा ने नोट की कई तह बनाई और छोटा कर दिया। फिर मेरे हाथ में रखकर मुट्ठी बांधने को कहा। मेने मुट्ठी बांधी तो मुझे लगा कि नोट की जगह कुछ दूसरी वस्तु है।
बाबा ने मुझसे कहा कि ये शिवजी का प्रसाद है। इसे खाना और घर में सभी को खिलाना। तेरा जीवन सफल हो जाएगा। मैं डरा कि नोट का हिसाब पिताजी को कहां से दूंगा। इस पर मैने मुट्ठी खोल दी। देखा कि हाथ में मिश्री की डली थी। मैने बाबा से कहा कि इसे अपने पास ही रखो और मुझे मेरा नोट वापस दो। इस पर बाबा ने दोबारा मेरी मुट्ठी बांधी और कहा कि नोट तेरे हाथ में रख रहा हूं, लेकिन यह प्रसाद बन रहा है। अबकी बार मेरी हथेली में एक ताबीज जैसी वस्तु थी। मैने चेतावनी दी कि यदि मेरा नोट वापस नहीं दोगे तो मैं शोर मचा दूंगा। तब बाबा कुछ नरम हुआ और मेरा नोट वापस दिया। फिर बोला चाय के पैसे दे जा। मैरी जेब में करीब तीन रुपये छुट्टे थे। मेने उसे देकर अपनी जान छुड़ाई।
अब इंटरव्यू की तिथि निकट आ रही थी। मुझे अंबाला जाना था। मैने पिताजी से ही मदद को कहा। पहले पिताजी आग बबूला हुए। उन्हें फिल्मों से काफी चिढ़ थी। वह कहते थे कि फिल्में अच्छा संदेश नहीं देती हैं। युवा पीढ़ी को बिगाड़ने में फिल्मों का ही योगदान है। फिर भी पिताजी ने कहा कि यदि तेरी जिद है तो उनके दफ्तर में कोशिक बाबू हैं, उनसे मिल ले। कोशिक बाबू के बड़े भाई आंबाला रहते हैं। वहां वे तेरी मदद कर देंगे।
मैं कोशिक अंकल से मिला। पहले उन्होंने भी मुझे लंबा-तगड़ा लेक्चर दे दिया। फिर उन्होंने अंबाला स्थित अपने भाई का पता मुझे लिख कर दिया। साथ ही भाई को एक पत्र भी लिखा। उसमें यह लिखा था कि ये हमारे परिचित है और इसकी हर संभव मदद करना। मैं पत्र लेकर अंबाला गया और पहले कोशिक अंकल के भाई के घर पहुंचा। इंटरव्यू से एक दिन पहले ही मैं अंबाला पहुंच गया।
कोशिक परिवार काफी अच्छा था। उन्होंने मेरी आवाभगत ऐसी की कि जैसे मैं उनका कोई करीबी मेहमान हूं। उन्हें पता चला कि मेरा उसी दिन जन्मदिन भी है। इस पर उन्होंने घर में वे सब पकवान बनाए, जो शायद मेरी मां ने भी मेरे जन्मदिन पर नहीं बनाए होंगे। यह परिवार काफी छोटा था। पति, पत्नी और एक बेटी। बेटी मेरी उम्र की ही रही होगी। इस घर में मैने रात काटी। उन्होंने मुझे एक्टिंग करने को कहा। मैने जितने डायलॉग रटे थे, तोते के समान उन्हें अभिनय के साथ दिखाता चला गया। सभी ने मेरी तारीफ की, पर मुझे पता नहीं कि तारीफ मेरा दिल रखने को की, या फिर वाकई में मेरे अभियन से वे प्रभावित हुए।
अगले दिन कोशिक अंकल ने मेरे स्क्रीन टेस्ट से संबंधित पत्र पर लिखे पते को देखा और मुझे साथ लेकर वहां चल दिए। एक बाजार में एक भवन पर जब हम पहुंचे तो वहां संबंधित कंपनी का बोर्ड लगा मिला। वह नृत्य, संगीत, कला केंद्र आदि सभी कुछ था। भीतर जाने पर एक निर्देशक महोदय चौड़ी मेज के पीछे बैठे थे। दीवारों पर फिल्मों के पोस्टर लगे थे। पहले निर्देशक महोदय ने भी मुझे यही समझाने का प्रयास किया कि ये लाइन बड़ी गंदी है। इसमें क्यों जाना चाहते हो।
मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था कि यदि मुझे डराना ही था तो अखबार में विज्ञापन क्यों छापा। फिर निर्देशक ने कहा कि पहले मन बना लो कि फिल्मों में आना चाहते हो या नहीं। मैने कहा कि मैं मन बनाकर ही आया हूं। इस पर उन्होंने कहा कि इंटरव्यू फीस जमा करा दो। करीब 30 साल पहले सौ रुपये इंटरव्यू फीस भी काफी बड़ी रकम थी। मैने फीस जमा कराई और फिर निर्देशक महोदय के कमरे में आ गया। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट के नाम पर मुझे कुछ भी अभिनय करने को कहा।
मैने भी तीन पागलों की कहानी वाला अभिनय कर उसे दिखा दिया, जो मैं हर दिन तोते की तरह रटता रहता था। उसने कहा कि कुछ दिन में आपको शूटिंग के लिए बुलाया जाएगा। इस दौरान रहने व खाने की व्यवस्था कंपनी करेगी। यदि फिल्म हिट हो गई तो आपको आगे बढ़ने का मौका मिल जाएगा।
खैर में कोशिक परिवार से विदा लेकर घर चला आया। हर दिन मेरी नजर डाकिये पर रहती थी कि शूटिंग के लिए बुलावे का पत्र कभी भी आ सकता है। पर पत्र नहीं आया। फिर एक दिन मेरी नजर समाचार पत्र की एक खबर पर पड़ी। जो यह थी कि फिल्म में काम दिलाने के नाम पर युवाओं से ठगी करने वाला गिरफ्तार। यह समाचार अंबाला की उसी कंपनी का था, जिसमें मैं इंटरव्यू देकर आया था।
इस घटना के अब करीब तीस साल से ज्यादा का समय हो चुका है, लेकिन देहरादून से अंबाला तक की दौड़ जीवन में बहुत कुछ सिखा गई। साथ ही ये भी बता गई कि आज जहां लोग अपने घर के लोगों को ही बोझ समझने लगे हैं। बूढ़े मां बाप को उपेक्षित रहना पड़ता है। बच्चे उन्हें दो रोटी तक देने की बजाय अनाथालय आश्रम का रास्ता दिखा देते हैं। वहीं, कौशिक परिवार के सेवा सत्कार ने मुझे ये सोचने में मजबूर कर दिया कि इस दुनिया में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है। ऐसे में जब भी कभी अंबाला का नाम सुनता हूं तो मेरी आंखों के सामने कौशिक परिवार के सदस्यों की तस्वीर उभरकर सामने आ जाती है। तब सोचता हूं कि काश हर परिवार के सदस्य इस तरह के होते।
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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