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December 12, 2024

खुद पर हमला होते देख भालू से भिड़ गया ग्रामीण, संघर्ष में भालू पड़ा भारी, तभी कुत्ते जौली ने मालिक की बचाई जान

खेत में ग्रामीण और भालू के बीच गजब का संघर्ष हुआ और जीत ग्रामीण की हुई। इस लड़ाई में एक बार तो ऐसा समय आया का भालू भारी पड़ गया और ग्रामीण को साक्षात मौत नजर आने लगी।

खेत में ग्रामीण और भालू के बीच गजब का संघर्ष हुआ और जीत ग्रामीण की हुई। इस लड़ाई में एक बार तो ऐसा समय आया का भालू भारी पड़ गया और ग्रामीण को साक्षात मौत नजर आने लगी। तभी उसके पालतू कुत्ते जौली को अपना फर्ज याद आया और वह भी भालू से भिड़ गया। फिर क्या था, भालू हो हार माननी पड़ी और जंगल की तरफ भागने पर मजबूर होना पड़ा। इस गुथमगुत्था में ग्रामीण भी बुरी तरह घायल हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
वन्य जीव के साथ संघर्ष की ये कहानी उत्तराखंड में पौड़ी जिले के नैनीडांडा प्रखंड के उम्टा गांव की है। इस गांव में मालिक को संकट में देख कुत्ते ने भी संघर्ष में खुद को झोंक दिया। साथ ही मालिक की जान बचाने में कामयाब रहा। जौली नाम के इस कुत्ते की हर तरफ तारीफ हो रही है।
बताया जा रहा है कि ग्राम उम्टा निवासी सुखबीर सिंह गांव में ही सब्जी उत्पादन का कार्य करते हैं। गत दोपहर करीब दो बजे वह अपने खेतों में उगी सब्जी में सिंचाई कर रहे थे। इसी दौरान खेतों से कुछ दूर झाड़ि‍यों में छिपे भालू ने उन पर हमला कर दिया। भालू के अप्रत्याशित हमले से वे घबरा गए व उन्होंने हाथ में पकड़ी कुदाल भालू पर दे मारी। भालू पर इसका असर नहीं हुआ।
भालू ग्रामीण के चेहरे को नोंचने के लिए बार बार वार कर रहा था। ऐसे में उसके हमले से बचने को सुखबीर सिंह ने भालू के दोनों अगले पैर पकड़ लिए। इस गुत्थमगुत्था में दोनों जमीन में गिर पड़े। सुखबीर के मुताबिक भालू की ताकत के आगे वे खड़े नहीं हो पा रहे थे। उन्हें सामने साक्षात मौत नजर आने लगी। इसी दौरान उनका कुत्ता जौली तेजी से मौके पर आया और भालू की ओर भौंकते हुए उसकी टांग पर झपट गया।
इस अप्रत्याशित हमले से भालू भी एक बार हड़बड़ा गया। वह कुत्ते के जबड़े से अपनी टांग छुड़ाने की कोशिश करने लगा तो तभी मौका देख सुखबीर सिंह संभले और खड़े हो गए। जैसे ही भालू उनके कुत्ते की ओर बढ़ा तो उन्होंने भालू पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। दो तरफा हमले की वजह से भालू ने हार मानी और मौके से भाग गया। बताया कि यदि उनका कुत्ता जौली मौके पर नहीं पहुंचता तो भालू उनकी जान ले लेता।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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