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June 1, 2025

करछी से लेकर कलम की कहानी, साधना की साधना में संघर्ष का जोश, हर गदेरे से गंगा की धाराओं तक मिठासः आशिता डोभाल

देवभूमि उत्तराखंड अपने आप में एक खूबसूरत राज्य तो है ही, साथ ही सदियों से ये पर्वतीय राज्य समय समय पर ऋषि मनिसियों, वीर बालाओं, विरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी रही है। चाहे बात गौरा देवी की करें या तीलू रौतेली की, या महारानी कर्णावती की, या बसंती बिष्ट की। या किसी भी साधारण सी दिखने वाली गांव की थाती माटी से जुड़ी किसी भी महिला की बात करें। उसके संघर्षों की दास्तां अपने आप में एक अनूठी मिसाल कायम करती हुई कहानी सी लगेगी। उस कहानी की पात्र लिखते लिखते आप महसूस करोगे कि पहाड़ में जीवन कितना कठिन, कितना दुश्वार रहा होगा। चाहे किसी भी परिस्थिति में हो पर पहाड़ की नारी ने इन संघर्षों और कठिनाइयों को सहर्ष स्वीकार किया। उन्हें पार करके आज देश विदेश में विश्व पटल पर अपना नाम ऊंचा कर रही है। खबर की हैडिंग में गदेरा शब्द का इस्तेमाल किया गया। हो सकता है कि कई लोग नहीं जानते होंगे कि गदेगा क्या है। गदेरा पहाड़ों में बरसाती नालों को कहा जाता है।  (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं आज भी कई गांव
उत्तराखंड राज्य का सीमांत जिला उत्तरकाशी आज भी विषम भौगोलिक परिस्थितियों से जूझ रहा है, जबकि हम आज 21वीं सदी में जी रहे है। इसके बावजूद हमारे कई गांव आज मूलभूत सुख सुविधाओं से वंचित हैं। मां गंगा और यमुना का उद्गम भी यही से हुआ है और ये नदियां आज भी हजारों लाखों लोगों की प्राणदायिनी बनी हुई है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

साधना की साधना से परिचय
गांव की मिट्टी से लिखाई और आज आधुनिक तकनीक तक के सफर को तय करने वाली जिनकी रचनाओं में गांव का वो परिवेश नजर आता है, जिसे उन्होंने देखा है भोगा है, जिया है। हां मैं बात कर रही हूं उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौड़ विकासखंड के दूरस्थ गांव जोगथ मल्ला के निवासी गीताराम जगूड़ी एवं शैला देवी जगूड़ी के घर में जन्मी साधना जगूड़ी जोशी की। वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी रही है। माता पिता की तपस्या से जन्मी साधना नाम से ही नही, आज अपनी साधना से लगातार कुछ न कुछ नया करने का जोश जुनून सिर्फ अपने अंदर ही नही, बल्कि दूसरे के अंदर भी भरती हैं। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

बालिका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण
साधना का बचपन बड़ी विषम भौगोलिक परिस्थितियों से घिरा रहा। क्योंकि, अमूमन पहाड़ में बालिका शिक्षा पर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। पिताजी प्रवास में ब्राह्मणवृत्ति का काम करते थे। उन्होंने एक प्रण तो ले ही लिया था कि घर की बेटी व बहू पढ़ी लिखी होनी जरूरी है। ताकि दूर प्रवास में रहने वाले भाईयों या पति को चिट्ठी पढ़ने लिखने में सक्षम हों। यानी कि इतना कुछ लिखने के लिए बालिकाओं को सिर्फ पांचवी या आठवीं पास करवाया जाता था। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

मिट्टी में लिखकर की पढ़ाई की शुरुआत
साधना जोशी का कहना है कि मैंने पाटी और मिट्टी (धुळेटा) पर लिखकर अपनी पढ़ाई की शुरुआत की है। उनका कहना है कि सबसे पहले शिक्षा का मूलमंत्र “ॐ नमः सिद्धम” लिखवाकर उनकी पढ़ाई की शुरुआत हुई थी और उनका कहना है कि मेरी पढ़ाई भी चिट्ठी पत्री लिखने पढ़ने के लिए ही करवाई गई थी। जिद्द और जुनून से सब संभव होता गया और पढ़ने का सपना साकार होता चला गया। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसे किया संघर्ष
प्राइमरी शिक्षा गांव में ही हुई व आगे की शिक्षा के लिए गांव से 10 किमी दूर पोखरी सौड़ में 6वीं से 8वीं तक को पढ़ाई की। 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई राजकीय बालिका इंटर कॉलेज उत्तरकाशी में हुई। साधना गांव घर में होने वाले खेती किसानी के काम भी करती रही। वह हर काम में निपुण रही है। अब सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि आगे की पढ़ाई कैसे की जाए। फिर घर में सब लोगों की राय लेने के लिए घर में एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया। साधना बताती हैं कि मेरी पहली गुरु मेरी मां और मेरी सबसे बड़ी भाभी रही हैं। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसे बढ़ते गए कदम
मार्गदर्शक के रूप में भाइयों ने भी साथ दिया। उच्च शिक्षा के लिए भाभी ने पूरे परिवार के सामने बात रखी व साधना ने घर के सारे काम करने के लिए हामी भरी। पहले तक बालिकाओं के लिए असुरक्षा की भावनाओं ने हमेशा घर बनाए रखा। पहाड़ की बेटी के मजबूत इरादे ने सजगता से पढ़ाई की। पहले स्नातक, स्नातकोत्तर, बीएड, एमएड, विशिष्ठ बीटीसी की डिग्री हासिल की। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

गांव से बाहर रखा कदम और कीर्तिमान किया स्थापित
जोगथ मल्ला दूरस्थ गांव तो था ही पर शिक्षा के जगत में साधना जी गांव की पहली लड़की थी जो उच्च शिक्षा के लिए अपने गांव से बाहर निकली। शिक्षा जगत में एक नया कीर्तिमान स्थापित करने वाली साधना आज बहुत सारी महिलाओं के लिए प्रेरणाश्रोत और मार्गदर्शन का काम करती है। खासकर उन बालिकाओं के लिए जो आज 21वीं सदी में शिक्षा से वंचित रहती है। अमूमन पहाड़ में पढ़ाई लिखाई पूरी हो जाने पर घर परिवार का एक ही लक्ष्य होता है शादी। शादी के बाद भी साधना ने अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखी व प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

साहित्य के प्रति रुझान
साहित्य लेखन कार्य में साधना जोशी 11वीं कक्षा से प्रयासरत रहीं। उनकी पहली कविता कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित हुईं, जिससे लेखन के प्रति उनका रुझान बना। लेखन की यात्रा तब से अब तक निरंतर जारी है। अब वह एक कुशल ग्रहणी के साथ साथ एक शानदार लेखिका और नृत्यांगना भी है। बेरोजगारी के लंबे दौर में भी साधना ने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ पठन पाठन के क्रम में तो रखा ही, साथ ही लेखन भी करती रही। जब कोई कुछ भी कार्य कर रहा होता है हो तो ऊपर वाला भी उसका साथ देता है। परिवार में सास ससुर पढ़े लिखे थे। ऐसे में उन्होंने हमेशा साधना के हौसलों की उड़ान को पंख देने का काम किया। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

सर्वश्रेष्ठ अध्यापक का पुरस्कार
उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले में चिन्यालीसौड़ विकासखंड के सुदूरवर्ती गांव उलण तक जाने के लिए 15 किमी पैदल चलना पड़ता है। यहां शिक्षा विभाग में अध्यापिका के रूप में साधना की पहली बार नियुक्ति हुई और उन्होंने उस दुर्गम स्थान पर बड़ी शालीनता और सजगता के साथ पठन और पाठन कार्य किया। इसका परिणाम ये हुआ कि साधना को सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के अवार्ड से नवाजा गया। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रकृति के बीच एक सुखद और आत्मिक जीवन के क्षणों को कलम से उकेरने का काम किया। साधना की समय प्रबंधन की तकनीक ने उन्हें एक श्रेष्ठ शिक्षक ही नहीं, एक कुशल मंच संचालिका भी बनाया। इसका परिणाम ये रहा कि आज वह बड़े बड़े मंचो पर एक सफल संचालिका के रूप में देखने को मिल जाती हैं। राजकीय इंटर कॉलेज श्रीकोट में अध्यापन का एक नया अध्याय शुरू करने वाली साधना को आज भी एक अच्छी शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

साहित्य के साथ संगीत की प्रतिभा की धनी
राजकीय श्रीकोट के प्रांगण ने साधना जोशी की झोली में साहित्य संगीत के वो अनमोल बीज बोए है, जिसने उनके जीवन की दशा और दिशा ही बदल दी। क्योंकि वहां के छात्र छात्राओं को सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़कर उन्होंने उनमें ऐसा उत्साह उमंग भर दिया कि वे जिले से लेकर राज्य के मंच तक अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने लगे। बच्चों को सिखाते सिखाते उनकी अपनी प्रतिभाएं इतनी निखर गई कि वर्ष 2017 में उन्होंने अपनी प्रथम कविता संग्रह दोहरी भूमिका लिख डाली। साथ ही सांस्कृतिक प्रेम ने उनको वर्ष 2020 में प्रदेश स्तर पर संगीत शिक्षक प्रतिभा सम्मान से नवाजा गया। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

परंपराओं को जिंदा रखने का प्रयास
लोक नृत्य के प्रति उनका गहरा लगाव है। अपनी दुधबोली के प्रति उनके मन में गहरा लगाव है। वह आज भी लुप्त होती परंपराओं, गीतों, बाजूबंद, खुदेड़ गीत, गांव घरों के बर्तनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने छात्र छात्राओं को समय समय पर जागरूक करती हैं। पठाली की कुड़ी द्वारी बचाने के लिए प्रेरित करती हैं। जहां आज लोग बड़े शहरों की दौड़ के लिए लालायित है, वहीं पर साधना जोशी दुर्गम विद्यालयों में ही रहकर प्रकृति के वातावरण में ही झरने, नदियों, पहाड़ बांज बुरांश के बीच अपनी कलम चलाना चाहती हैं। इसीलिए वो बहुत खुश होकर आज भटवाड़ी ब्लॉक के राजकीय इंटर कॉलेज सौरा में स्थानान्तरण से अत्यंत खुश है। इसी प्रवृति ने उनको एक अच्छा शिक्षक, लेखक और बेहतरीन कवियत्री बनाया है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

कक्षाओं में डायरी लेखन के लिए प्रेरित
इनके कार्यों को मिठास हर गदेरे से बहकर गंगा की धाराओं में बह रही है। यह शिक्षण कार्यों के साथ अनेकों सांस्कृतिक सामाजिक संस्थाओं में समय समय पर अपनी सेवा देती हैं। चाहे प्रभव साहित्य मंच में बतौर सचिव के पद पर, या समता ज्ञान विज्ञान समिति की जिलाध्यक्ष, हिंदी साहित्य भारती की जिला सचिव, केंद्रीय विद्यालय की प्रबंधन समिति की मनोनित सदस्य के रूप में हो, या फिर वीरांगना समूह की सदस्य के रूप में, हर पल वह अपनी सेवाएं दे रही हैं। यही नहीं छोटे छोटे साहित्य संगीत के समूहों में बच्चो को जोड़कर उनकी व्यक्तिगत रूप से मदद भी करती हैं। विद्यालय की कक्षाओं में डायरी लेखन भी करवाती है। क्योंकि साधना मानती हैं कि इससे बच्चो को कुंठायें,मानसिक परेशानियां और अपने चारो और के वातावरण के प्रति समझ विकसित होती है। वो छल छलाकर डायरी के पन्नो पर बिखर जाता है। इससे बच्चा तन मन से हल्का रहता है और उसके जीवन में गांठे नही पड़ती है। यही बात उन्होंने प्रसार भारती के साक्षात्कार में व्यक्त की है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

बिना रुके चलाती रहती हैं कलम
साधना जोशी अपनी कलम हर पल चलाती हैं। बेटी की अभिलाषा, सड़क है जिंदगी, गुदड़ी के लाल, छोटे शहर, गांव का अपनापन, फूलों का शहर, मुखरित पर्यावरण, सहित ऐसी अनेक कविताएं अपने दूसरे काव्य संग्रह सड़क है जिंदगी में, उन्होंने ऐसा चित्र उकेरा है। इन्ही कार्यों को समाज सराहता है और उन्हें समय समय पर सम्मानित भी करता है। साधना को लोक कला, साहित्य समाज के उन्नयन के लिए कार्य करने वाली कार्यकत्री के रूप में वेद व्यास सम्मान 2023, सुषमा स्वराज सम्मान 2023, गंगा श्री सम्मान जैसे अनेकों क्षेत्रीय सम्मानों से नवाजा जाता रहा है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)

बालिका शिक्षा को लेकर बनीं उदाहरण
पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी न पहले थी, न आज है। आज पहाड़ के गांव घर सुने और सुनसान पड़े हैं। आज भी कई गांव बालिका शिक्षा पर ध्यान नहीं देते है। वहां पर साधना जोशी जैसी महिलाएं आज लोगो के लिए उदाहरण बन जाती हैं। उनके “करछी से लेकर कलम” तक के सफर की सफल कहानी आज कई बालिकाओं के लिए प्रेरणा श्रोत का काम करती है।

लेखिका का परिचय
आशिता डोभाल
सामाजिक कार्यकत्री
ग्राम और पोस्ट कोटियालगांव नौगांव उत्तरकाशी।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “करछी से लेकर कलम की कहानी, साधना की साधना में संघर्ष का जोश, हर गदेरे से गंगा की धाराओं तक मिठासः आशिता डोभाल

  1. वाह अदभुत प्रयास
    सच है कर्मवीर कभी नही झुकते आपत्ति अंधकारो से

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