नागिन नहीं, ये जीव 17 साल तक याद रखता है दुश्मन को, करता है भोजन चोरी, साथी का करता है अंतिम संस्कार
कहावत है कि यदि नाग को मारा जाए तो नागिन बदला लेती है। इस तरह की कई फिल्में भी आईं, ऐसे में लोगों के मन में ये धारणा बन गई कि नाग या नागिन को छेड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि वे बदला लेते हैं। हालांकि, किसी भी जीव को परेशान करना या नुकसान पहुंचाना गलत है। फिर भी हम आपको बताने जा रहे हैं कि नाग और नागिन के बदले की कहानियों का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। फिर भी इस धरती पर एक जीव ऐसा है जो 17 साल बाद भी अपने दुश्मन को याद रखता है। साथ ही अपनी बिरादरी के लोगों को भी बता देता है कि उनका दुश्मन कौन है। ये है एक पक्षी कौवा। जो चतुर है, चालाक है। नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया है कि कौवे 5-10 साल नहीं, बल्कि 17 साल तक किसी इंसान और उसकी दी गई तकलीफें याद रख सकते हैं। फिलहाल हम इस स्टोरी में पहले नाग नागिन के बदले पर बात करेंगे, फिर कौवे की खासियत को बताएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कई घटनाओं ने लोगों का बढ़ाया विश्वास
लोगों का यह मानना होता है कि सांप आंखों से फोटो ले सकते हैं। अगर कोई सांप की हत्या करता है तो उसकी फोटो सांप अपनी आंख में रख लेता है और फिर मृत सांप का साथी या प्रेमिका उसकी आंख में देखकर मौत का बदला लेती है। सांप के किसी व्यक्ति को काटने की घटना को ऐसी ही कहानी से जोड़ा जाता है। एक बार तो यूपी के फतेहपुर के निवासी विकास त्रिवेदी को 40 दिन में 7 बार सांप ने काटा। इसके बाद बदले की कहानी जोर पकड़ने लगी। ऐसी घटनाओं से ही लोगों में चर्चा होने लगती है कि क्या सच में सांप की आंखें फोटो खींचने में सक्षम हैं? आखिर सांप की याददाश्त कितनी तेज होती है? इस मामले में एक्सपर्ट बताते हैं कि बदला लेने की बातें निराधार हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सांप की याददाश्त बेहत कम
एक्सपर्ट का कहना है कि असल में सांप की अधिकांश प्रजातियों की याददाश्त बेहद कम होती है, या फिर सांप में याददाश्त नहीं होती है। उन्हें कोई भी चीज देर तक याद नहीं रहती है। वह मौजूदा परिस्थिति और जरूरत के अनुसार अपना जीवन जीते हैं। इसको लेकर विज्ञान में कई प्रकार के शोध हुए हैं। वहीं सांपों की देखने की क्षमता भी बेहद कम होती है। उन्हें कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं देता है। तो फोटो खींचने की बात भी निराधार है। ऐसे में कहा जा सकता है कि नागिन के काटने का बदले से कोई लेना-देना नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूंघने की शक्ति सबसे अधिक
स्नेक एक्सपर्ट के मुताबिक, सांपों के अंदर सूंघने की शक्ति सबसे अधिक होती है। हां ये जरूर हो सकता है कि अगर कोई सांप की हत्या करे और हत्या में प्रयोग डंडा बिना साफ किए घर में रखे तो सांप घर में आ सकते है, लेकिन इसकी संभावना भी बेहद कम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कौवे के परिवार में बुद्धिमत्ता पाई जाती है, जो 120 से ज़्यादा पक्षी प्रजातियों का एक विविध समूह है। कोर्विड्स के नाम से जाने जाने वाले पक्षियों के इस परिवार में कौवे, रेवेन , रूक, जे, जैकडॉ, मैगपाई , ट्रीपाई, नटक्रैकर और चोफ शामिल हैं। इनमें एक औंस के वजन वाला ड्वार्फ जे होता है, जो केवल मेक्सिको में पाया जाने वाला एक छोटा वन पक्षी है। वहीं, तीन पाउंड का कॉमन रेवेन उत्तरी गोलार्ध में पाया जाने वाला एक चालाक अवसरवादी पक्षी तक शामिल हैं। कौवे का मस्तिष्क चिम्पांजी के मस्तिष्क के समान सापेक्ष आकार का होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब करें कौवे के बदला लेने की बात
नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया है कि कौवों ऐसा जीव है जो 5 से 10 साल नहीं, बल्कि 17 साल तक किसी इंसान और उसकी दी गई तकलीफें याद रख सकते हैं। अगर नए शोध की मानें तो दुनिया में सबसे बुद्धिमान माने जाने वाला कौआ ऐसा करता है। इस अनोखी रिसर्च में यही बात सामने आई है कि कौवे बदले की भावना को 17 साल तक पाल कर रखते हैं। यह खोज कौवों की याद रखने की अद्भुत काबिलियत को दिखाने का बढ़िया नमूना है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुछ इस तरह किया गया प्रयोग
इस शोध परियोजना की अगुआई वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने की थी। इसे 2006 में शुरू किया गया था। इस अध्ययन की शुरुआत पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर जॉन मार्जलूफ ने की थी। इसके लिए उन्होंने कुछ डरावने मुखौटे पकड़ कर 7 कौओं को पकड़ा था और उन्हें छोड़ने से पहले उनके पैर में छल्ले डा दिए थे। ताकि बाद में उनकी पहचान की जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बदला लेने आया कौवों का झुंड
कौवों को पकड़ने और उन्हें छोड़ने के बाद के सालों मे प्रोफेसर और उनके सहयोगियों ने उन्हीं मास्क को पहन कर यूनिवर्सिटी कैम्पस में घूमते हुए स्थानीय कौओं को दाना डालना शुरू किया। मार्ज़लूफ जब मास्क पहने हुए थे, तब उनके सामने आए 53 कौवों में से 47 ने उन्हें बुरी तरह परेशान कर दिया था। इनमें वे सात कौए भी थे, जिन्हें उन्होंने पहले पकड़ा था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहले संख्या बढ़ी, फिर आने लगी कमी
हैरानी की बात ये थी कि परेशान करने वाले कौवों की संख्या पहले कहीं ज्यादा थी। इससे पता चलता है कि ये पक्षी उन्हें खतरे में डालने वाले इंसानों को पहचान सकते हैं और इस जानकारी को अपने साथियों तक भी पहुंचा सकते हैं। अजीब बात तो तब हुई जब 2013 में परेशान करने वालों की संख्या खासी से बढ़ गई और उसके बाद से उसमें कमी देखने को मिलने लगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुखौटे का उपयोग
प्रयोग शुरू होने के 17 साल बाद, सितंबर 2023 तक मार्ज़लफ़ के मास्क वाली सैर पर एक भी परेशान करने वाला कौआ नहीं सुना गया। अध्ययन का एक और दिलचस्प पहलू डिक चेनी की तरह दिखने वाले एक “तटस्थ” मुखौटे का उपयोग करना था। चेनी उस समय अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे। उन्होंने मुखौटा बदला और चेनी का मुखौटा लगातार कौवों को बिना किसी परेशानी के खाना खिलाया। ऐसे में वे और उनके साथी पक्षियों के प्रकोप से बच गए। जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ा, अनजाने स्वयंसेवकों को मुखौटे पहनने के लिए मजबूर किया गया, जो कौवों के “खतरनाक” या “तटस्थ” वर्गीकरण से अनजान थे। ऐसे ही एक स्वयंसेवक ने खुद को पक्षियों के शोरगुल के केंद्र में पाया, जिसने खतरों को पहचानने और याद रखने में कौवों के कौशल की पुष्टि की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बहुत ही काबिल होते हैं कौवे
दुनिया में कई जगह और कई बार कौवों के हमला करने की घटनाओं का उल्लेख पाया गया। कौवे अपनी अविश्वसनीय बुद्धिमानी से हमेशा चौंकाते रहते हैं। यह केवल खतरों को पहचानने और द्वेष रखने तक ही सीमित नहीं है। पिछले शोध से संकेत मिलता है कि कौवों में औजार बनाने और यहाँ तक कि गिनने की प्रतिभा होती है।
शिकार को फांसने की अद्भुत कला
कौवे अवसरवादी और रचनात्मक होते हैं। आमतौर पर वे नए खाद्य स्रोतों का दोहन करते हैं या अपने जीवन को आसान बनाने के लिए नई खाद्य रणनीतियाँ अपनाते हैं। अमेरिकी कौवा अपनी मछलियाँ खुद पकड़ने के लिए जाना जाता है, उदाहरण के लिए, कुछ मामलों में मछलियों को अपने करीब लाने के लिए चारा के रूप में रोटी या अन्य भोजन का उपयोग भी करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भोजन चोरी करने में भी माहिर
कौवे दूसरे जानवरों का भोजन चोरी करने में भी माहिर होते हैं। कभी-कभी तो वे चुपके से शिकार का पीछा करके उनके घोंसलों या भोजन के भंडार तक पहुंच जाते हैं। कॉर्नेल लैब ऑफ़ ऑर्निथोलॉजी के अनुसार, एक मामले में अमेरिकी कौवों के एक समूह को नदी के ऊदबिलाव का ध्यान भटकाते हुए देखा गया ताकि वे उसकी मछलियाँ चुरा सकें। एक अन्य समूह ने आम मेर्गेन्सर का पीछा किया, ताकि वे उन छोटी मछलियों को पकड़ सकें, जिन्हें बत्तखें उथले पानी में पकड़ रही थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस तरह कठोर मेवे फोड़ने के लिए लगाते हैं दिमाग
अब कौवों की बुद्धिमानी की बात पढ़ोगे तो हैरान हो जाओगे। कई कौवे उड़ते समय हवा से घोंघे और कठोर खोल वाले मेवे गिराकर गुरुत्वाकर्षण और ज़मीन का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, ऐसा दूसरे पक्षी भी करते हैं, लेकिन कुछ कौवे इस प्रयोग को कुछ कदम आगे ले जाते हैं। उदाहरण के लिए जापान में कौवे सड़कों पर अखरोट रखते हैं, ताकि कारें उनके छिलकों को कुचल दें। ट्रैफ़िक लाइट रेड होने पर जब वाहन रुकते हैं तो कौवे आसानी से खुले हुए मेवे इकट्ठा कर उड़ जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
औजार भी बनाते हैं कौवे
1960 के दशक की शुरुआत में प्राइमेटोलॉजिस्ट जेन गुडॉल ने अपनी खोज से दुनिया को चौंका दिया कि जंगली चिम्पांजी दीमकों को पकड़ने के लिए टहनियों का इस्तेमाल औजार के रूप में करते हैं। इससे यह विचार गलत साबित हुआ कि मनुष्य ही एकमात्र औजार इस्तेमाल करने वाली प्रजाति है। अब नए अध्ययन से पता चलता है कि कई कोर्विड औजारों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन न्यू कैलेडोनियन कौवे विशेष रूप से उन्नत हैं। चिम्पांजी की तरह वे दरारों से कीड़ों को पकड़ने के लिए छड़ियों या अन्य पौधों के पदार्थ का उपयोग करते हैं। न्यू कैलेडोनियन कौवे जंगल में औजार भी बनाते हैं, जो केवल पाई जाने वाली वस्तुओं का उपयोग करने की तुलना में बहुत दुर्लभ है। इसमें एक छड़ी से पत्तियों को छाँटने से लेकर टहनियों, पत्तियों और कांटों से अपने स्वयं के हुक के आकार के औजार बनाने तक शामिल है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहेलियां सुलझाने में माहिर
ईसप की कहानी “द क्रो एंड द पिचर” में प्यासा कौआ थोड़े से पानी से भरे घड़े के सामने आता है, लेकिन शुरू में पानी का स्तर कम होने और घड़े की पतली गर्दन के कारण वह पानी नहीं पी पाता है। फिर कौआ घड़े में कंकड़ डालता है और पानी का स्तर इतना ऊपर उठा देता है कि वह पी सकता है। शोध ने न केवल यह सत्यापित किया है कि कौवे ऐसा कर सकते हैं, बल्कि यह दर्शाता है कि वे 5 से 7 वर्ष की आयु के मानव बच्चों के समान ही कौवे कई अन्य जटिल परीक्षणों में भी सफल हुए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अपने साथियों का अंतिम संस्कार भी करते हैं कौवे
कौवे अपने किसी एक पक्षी की मृत्यु होने पर “अंतिम संस्कार ” करने के लिए प्रसिद्ध हैं। कौओं के अपने समुदायों के भीतर मजबूत सामाजिक संबंध होते हैं। जब कोई कौआ मरता है, तो अन्य कौए उसके शरीर के चारों ओर इकट्ठा हो सकते हैं, काँव-काँव करते हैं और असामान्य व्यवहार करते हैं। यह व्यवहार सामाजिक बंधनों को मजबूत करने और क्षेत्र में अन्य लोगों को खतरे का संदेश देने का काम कर सकता है। कुछ शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इन सभाओं से कौवों को अपने पर्यावरण में खतरों के बारे में जानने में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि वे दूसरों की प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण कर सकते हैं और संभवतः उस स्थान को खतरे से जोड़ सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खतरे की सीख पर अध्ययन
शोक की संभावना को खारिज किए बिना, स्विफ्ट और अन्य शोधकर्ताओं ने कोर्विड अंतिम संस्कार के लिए संभावित प्रेरक के रूप में “खतरे की सीख” पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। स्विफ्ट लिखते हैं कि अगर मुझे जंगल में कोई मृत व्यक्ति मिले तो मैं दुखी हो सकता हूँ, लेकिन मैं चिंतित भी हो सकता हूँ और संभवतः मृत्यु के कारण की तलाश कर सकता हूँ। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मैं अगला न हो। शायद कौवे भी यही कर रहे हैं। खतरे के स्रोत की तलाश कर रहे हैं और अनुभव के प्रमुख तत्वों को याद कर रहे हैं, जो उन्हें भविष्य में सुरक्षित रखने में मदद करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आपस में बात करते हैं कौवे, रखते हैं द्वेष
कई तरह के कौवों ने मानव चेहरों को पहचानने की क्षमता का प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए मैगपाई और कौवे अतीत में अपने घोंसलों के बहुत करीब जाने वाले विशिष्ट शोधकर्ताओं को डांटने के लिए जाने जाते हैं। भले ही शोधकर्ता क्या पहनते हों। आप कौवे की “कांव कांव” ध्वनि से परिचित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी आवाज़ों की बोलियाँ भी होती हैं? मनुष्यों की तरह, जिनकी भाषा क्षेत्र दर क्षेत्र अलग-अलग हो सकती है, कौवों की दो आबादियों के बीच उनकी विमानन भाषा में भिन्नता होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नए झुंड के मुताबिक बदल लेते हैं आवाज
पक्षी विज्ञानी जॉन एम. मार्ज़लफ़ और लेखक टोनी एंजेल ने ” इन द कंपनी ऑफ़ क्रोज़ एंड रेवेन्स ” पुस्तक का सह-लेखन किया। उनकी पुस्सक के अनुसार , ध्वनियाँ क्षेत्रीय रूप से भिन्न होती हैं, जैसे कि मानव बोलियाँ जो घाटी दर घाटी भिन्न हो सकती हैं। अगर कौवा अपनी भीड़ बदल ले, तो वह अपनी आवाज़ को नए समूह में फ़िट होने के लिए बदल लेगा। मार्ज़लफ़ और एंजेल ने लिखा, “जब कौवे किसी नए झुंड में शामिल होते हैं, तो वे झुंड के प्रमुख सदस्यों की आवाज़ की नकल करके झुंड की बोली सीखते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक पत्नीव्रती भी होते हैं कौवे
कौवे सामाजिक पक्षी हैं और कई लोगों की समझ से ज़्यादा परिवार-उन्मुख होते हैं। कौवे जीवन भर संभोग करते हैं, जिसका अर्थ है कि संभोग करने वाला जोड़ा आम तौर पर अपने जीवन के बाकी समय तक साथ रहता है, लेकिन उनका पारिवारिक जीवन उससे कहीं ज़्यादा जटिल हो सकता है। स्विफ्ट लिखते हैं कि कौवे “एकांगी” होते हैं। एक और वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं कि उन्हें सामाजिक रूप से एकांगी, लेकिन आनुवंशिक रूप से कामुक माना जाता है। इसका मतलब है कि वे आम तौर पर जीवन भर एक साथी के साथ रहते हैं, लेकिन आनुवंशिक विश्लेषण से पता चलता है कि नर कौवे अपने परिवार की लगभग 80% संतानों के पिता होते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दोहरी जिंदगी भी जीते हैं कौवे
कॉर्नेल लैब ऑफ़ ऑर्निथोलॉजी के अनुसार, कुछ कौवे “दोहरी ज़िंदगी” भी जीते हैं। वे परिवारों और बड़े सामुदायिक बसेरों के बीच समय बांट सकते हैं। अमेरिकी कौवे साल भर एक क्षेत्र बनाए रखते हैं, जहाँ उनका विस्तृत परिवार रहता है और साथ मिलकर चारा इकट्ठा करता है। वहीं, साल के ज़्यादातर समय में, अलग-अलग कौवे घर के इलाके को छोड़कर कूड़े के ढेर और कृषि क्षेत्रों में बड़े झुंडों में शामिल हो जाते हैं और सर्दियों में बड़े बसेरों में सोते हैं। परिवार के सदस्य झुंड में एक साथ जाते हैं, लेकिन भीड़ में एक साथ नहीं रहते। एक कौवा दिन का कुछ हिस्सा शहर में अपने परिवार के साथ घर पर बिता सकता है और बाकी समय देश में बेकार अनाज खाने वाले झुंड के साथ बिता सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
युवा कौवे घर के सहायक के रूप में करते हैं काम
अमेरिकी कौवे वसंत ऋतु की शुरुआत में घोंसला बनाना शुरू करते हैं। वे अपने घोंसले लकड़ियों से बनाते हैं और उन्हें घास, फर या पंख जैसी नरम सामग्री से ढकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि कोई संदिग्ध व्यक्ति उन्हें देख रहा है, तो वे नकली घोंसले भी बना सकते हैं। युवा कौवे उड़ने के बाद कुछ महीनों तक अपने माता-पिता पर निर्भर रहते हैं, लेकिन वे घोंसले से बाहर निकलने के बाद भी कुछ समय के लिए अपने परिवार के पास ही रहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्विफ्ट लिखते हैं कि इन चूजों को उनके माता-पिता द्वारा अभी भी जमकर संरक्षण दिया जाता है, जिससे एक तरह की विस्तारित किशोरावस्था बनती है, जो उन्हें खेल व्यवहार के लिए समय और ऊर्जा देती है, जो उनके विकास और सांस्कृतिक सीखने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। युवा कौवे अंततः अपने माता-पिता के साथ कम समय बिताना शुरू कर देंगे और बड़े झुंड के साथ अधिक समय बिताएंगे। और पतझड़ और सर्दियों के आने पर उन्हें निर्णय का सामना करना पड़ेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्विफ्ट लिखते हैं कि वे या तो साथी खोजने और अपना क्षेत्र स्थापित करने से पहले ‘तैरने’ के लिए निकल सकते हैं। या अपने घरेलू मैदान पर रह सकते हैं और अगले साल के बच्चों के लिए ‘सहायक’ के रूप में कार्य कर सकते हैं। उत्तरार्द्ध सहकारी प्रजनन है, जिसमें दो से अधिक व्यक्ति एक ही झुंड में संतानों की देखभाल में मदद करते हैं। कॉर्नेल लैब के अनुसार, अधिकांश अमेरिकी कौओं की आबादी में, बड़ी संतानें कुछ वर्षों तक अपने माता-पिता को नए चूज़ों को पालने में मदद करती रहती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इतना बड़ा होता है परिवार
एक कौवे के परिवार में 15 कौवे तक शामिल हो सकते हैं, जिसमें पाँच अलग-अलग वर्षों के बच्चे मदद करने के लिए हाथ बँटाते हैं। स्विफ्ट लिखती हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि यह क्यों विकसित हुआ, लेकिन यह युवा कौवों के फैलाव को विलंबित करने में मदद कर सकता है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।