नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत पर आधारित नाटक “मुखजात्रा ” का दिल्ली में होगा मंचन
रियासत टिहरी के निरंकुश शासन के इतिहास और जनता के संघर्षों से उपजी टिहरी जनक्रांति पर केंद्रित नाटक “मुखजात्रा” का मंचन 24 दिसंबर को दिल्ली में आईटीओ (ITO)के समीप प्यारेलाल ऑडिटोरियम में होने जा रहा है। डॉ सुनील कैंथोला कृत मुखजात्रा के अखिल गढ़वाल सभा (देहरादून) एवं वातायन नाट्य संस्था के संयुक्त प्रयास से गत वर्ष देहरादून में अनेक प्रदर्शन हो चुके हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
15 अगस्त1947 को भारत को आज़ादी मिली, लेकिन अन्य कई रजवाड़ों की तरह रियासत टिहरी का सामंती शासन जारी रहा। यदि उत्तराखंड की बात की जाए तो यहां एक तरफ करों के बोझ से दबी प्रजा स्वतंत्र होने के लिए छटपटा रही थी, तो दूसरी तरफ सामंती तंत्र जनता की लूट -खसोट में व्यस्त था। 13 सितम्बर, 1947 को राजा की फौज ने सकलाना पट्टी पर हमला बोल दिया। यह पूरी सकलाना पट्टी सामूहिक से जुर्माना वसूली के लिए किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हमले से त्रस्त ग्रामीणों ने रियासत की सरहद पार कर आज़ाद भारत में शरण ली। कुछ समय पश्चात ग्रामीण एकजुट होकर वापस लौटे और उन्होंने राजा के सिपाहियों को कैद करके अपनी सीमा के पार भगा दिया। जनता के आक्रोश से भयभीत सकलाना के मुआफीदार ने दिसंबर में 1947 को सकलाना के भारत में विलय का गज़ट जारी कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सकलाना की जनक्रांति जिसे सामंती शासन ढंढक कहता था रियासत टिहरी के ख़त्म होने की शुरुआत थी। इसी क्रम में कामरेड नागेंद्र सकलानी ने प्रजामण्डल और सेवा दल के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर 10 जनवरी, 1948 को कीर्तिनगर तहसील पर कब्ज़ा करके तिरंगा फहरा दिया और आज़ाद पंचायत की स्थापना करते हुए नए अधिकारी भी नियुक्त कर दिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
11 जनवरी को राजा की फौज ने कर्नल डोभाल के नेतृत्व कीर्तिनगर तहसील पर हमला कर दिया जिस संघर्ष में नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी शहीद हो गए। इस घटनाक्रम के दौरान चन्द्र सिंह गढ़वाली भी कोटद्वार से पहुँच गए और उन्ही की सलाह पर यह निर्णय लिया गया कि शहीदों का अंतिम संस्कार रियासत की राजधानी टिहरी में भागीरथी और भिलंगना के संगम पर किया जायेगा। यह शवयात्रा तीन दिनों तक चलने के उपरांत टिहरी पहुंची जहां राजा की फौज ने आत्मसमर्पण कर दिया और आज़ाद पंचायत के शासन की स्थापना हुई। एक अगस्त 1949 को रियासत टिहरी का भारत संघ में वैधानिक रूप से विलय हो गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रियासत टिहरी के निरंकुश शासन के इतिहास और जनता के संघर्षों से उपजी टिहरी जनक्रांति पर केंद्रित नाटक “मुखजात्रा” का मंचन दिनांक 24 दिसंबर को दिल्ली में ITO के समीप प्यारेलाल ऑडिटोरियम में होने जा रहा है। विगत एक माह से दिल्ली पंचकुइयां रोड स्तिथ गढ़वाल हितैषिणी सभा के भवन में मुखजात्रा नाटक की रिहर्सल जारी है। नाटक के मंचन का बीड़ा उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान ने उठाया है। इसमें उत्तराखंड केंद्रित अन्य संस्थाओं के नामचीन कलाकार भाग ले रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ सुनील कैंथोला कृत मुखजात्रा के अखिल गढ़वाल सभा (देहरादून) एवं वातायन नाट्य संस्था के संयुक्त प्रयास से गत वर्ष देहरादून में अनेक प्रदर्शन हो चुके हैं। इन सभी का निर्देशन ख्यातिप्राप्तरंगकर्मी डॉ सुवर्ण रावत ने किया है। उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान द्वारा आगामी 24 दिसंबर को सायं 6 बजे प्यारे लाल ऑडिटोरियम में आयोजित होने जा रहे मुखजात्रा के मंचन को दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित गढ़वाली कुमाऊनी एवं जौनसारी भाषा अकादमी का भी सहयोग प्राप्त हुआ है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।