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November 8, 2025

दिल्ली दरबार में अटके तीरथ, पड़े अलग-थलग, भविष्य आयोग के पाले में, चुनाव हुए तो ममता के लिए भी, नहीं तो इस्तीफा

उत्तराखंड में फिर से सियासी संकट का दौर चल रहा है। यहां के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भविष्य चुनाव आयोग की कृपा पर टिका है। यदि चुनाव होते हैं तो उत्तराखंड में गंगोत्री विधानसभा सीट के साथ ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए भी चुनाव कराने पड़ेंगे।

उत्तराखंड में फिर से सियासी संकट का दौर चल रहा है। यहां के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भविष्य चुनाव आयोग की कृपा पर टिका है। यदि चुनाव होते हैं तो उत्तराखंड में गंगोत्री विधानसभा सीट के साथ ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए भी चुनाव कराने पड़ेंगे। यदि आयोग ने खारिज किया तो उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ेगा और यहां एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन होगा। ऐसे में बताया जा रहा है कि तीरथ सिंह रावत आज चुनाव आयोग को उत्तराखंड में रिक्त सीटों पर चुनाव कराने के लिए अर्जी दी है। फिलहाल कोरोना को लेकर चुनाव आयोग ने उपचुनावों पर रोक लगाई हुई है।
अलग-थलग पड़े सीएम तीरथ
बुधवार से तीरथ सिंह रावत दिल्ली में हैं। उनकी स्थिति असमंजस की बनी हुई है। तीन दिन से वह अपने दिल्ली स्थित आवास में हैं। उनकी सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई। वह अन्य किसी नेता से नहीं मिले। वहीं, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भी दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। वह बुधवार से अकेले हैं। हर बार दिल्ली दौरे से तरह न तो उनकी कोई फोटो जारी हुई और न ही कोई प्रेस नोट। न ही वे मीडिया से मिले। ऐसे में उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं भी जोरों पर हैं। तीरथ को गुरुवार को देहरादून पहुंचना था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें रुकने के लिए कहा है।
दूसरी लहर में फजीहत से खुश नहीं है केंद्रीय नेतृत्व
कोरोना की दूसरी लहर में फजीहत से केंद्रीय नेतृत्व भी सीएम तीरथ सिंह रावत से खुश नजर नहीं आ रहा है। कुंभ में कोरोना टेस्टिंग घोटोला सामने आने पर भी सरकार की साख गिरी है। अब पूरी गेंद चुनाव आयोग के पाले में सरका दी गई है। ऐसे में तीरथ खुद की कुर्सी बचाने के लिए खुद ही अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव आयोग से गुहार लगाने जा रहे हैं। अब देखना ये है कि आयोग क्या फैसला लेता है।
ओवर कांफीडेंस ने कराई फजीहत
इसे ओवर कांफीडेंस ही कहा जाएगा या फिर इसे बहुत अधिक समझदारी नहीं कहा जाएगा कि जब सल्ट की रिक्त सीट पर उप चुनाव कराए गए तो सीएम तीरथ सिंह रावत वहां से क्यों नहीं लड़े। अब अपनी कुर्सी बचाने के लिए बुधवार यानी 30 जून से दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। जून माह में सीएम तीरथ सिंह रावत तीसरी बार दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने पहुंचे। बताया गया कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें बुलाया। पहले दिन देर रात उनकी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई। इसके बाद वे गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले। अब उन्होंने भारत निर्वाचन आयोग को उत्तराखंड में रिक्त सीटों पर चुनाव कराने के लिए अर्जी दी है।
ये है तकनीकी पेंच
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्दवानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इसका मतलब है कि इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं। वहीं, लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी है। अगर ऐसे देखा जाए तो 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं है। अब, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है।
दो मुख्यमंत्रियों के लिए हो सकते हैं चुनाव
सूत्रों के मुताबिक एक ये भी खबर सामने आ रही है कि उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में संवैधानिक संकट के मद्देनजर मुख्यमंत्रियों के लिए अगले दो महीनों में उपचुनाव कराने पर विचार किया जा रहा है। इस महीने के आखिर या अगले महीने की शुरुआत में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो सकती है। फिर अगस्त के अंत या सितंबर के पहले हफ्ते तक ये चुनाव करवाए जा सकते हैं। उत्तराखंड में बिना विधान सभा सदस्य हुए मुख्यमंत्री रहते हुए तीरथ सिंह रावत को दस सितंबर तक छह महीने हो जाएंगे। दस सितंबर के बाद वहां सत्तारूढ़ दल के लिए असमंजस की स्थिति हो जाएगी। ऐसे में आयोग संभवत: तीरथ सिंह रावत के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भी उपचुनाव करा सकता है। ताकि फजीहत से बचा जा सके।
यदि चुनाव हुए तो सिर्फ दो ही सीट पर होंगे
माना जा रहा है कि यदि चुनाव हुए तो पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी और उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत के लिए किए जा सकते हैं। कोविड संकट के मद्देनजर कई राज्यों में उपचुनाव लंबित हैं, लिहाजा आयोग फिलहाल उन्हें अनुकूल परिस्थितियां आने तक लंबित ही रखेगा। राज्य सरकारों को संवैधानिक संकट से बाहर निकालने के लिए सिर्फ मुख्यमंत्रियों वाली सीटों पर पूरे एहतियात और सख्ती के साथ उपचुनाव कराया जा सकता है। उत्तराखंड में हल्द्वानी सीट भी इंदिरा हृदयेश के निधन से खाली है, लेकिन फिलहाल आयोग सिर्फ उन्हीं सीटों पर उपचुनाव कराने के मूड में दिख रहा है जहां चुनाव राज्य सरकार लिए अति आवश्यक है। वैसे, कोरोनाकाल में सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए उपचुनाव की संभावना कम ही है।
यहां भी हैं दिक्कत
यदि उपचुनाव होता है तो मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के गंगोत्री सीट से चुनाव लड़ने पर भी भाजपा को खतरे की घंटी दिखाई दे रही है। क्योंकि देवस्थानम बोर्ड को लेकर वहां तीर्थ पुरोहित नाराज चल रहे हैं। ऐसे में भाजपा संगठन भी तीरथ सिंह रावत को उनके हाल में ही छोड़ता नजर आ रहा है। अब बात करें हल्द्वानी सीट की। ये सीट नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद खाली हुई। यदि यहां से तीरथ लड़ते हैं तो वहां कांग्रेस प्रत्याशी को सिमपैथी वोट मिलने की ज्यादा संभावना है। ऐसा हर बार के उपचुनाव में देखा गया है। वहीं, तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने के बाद उन्हें लोकसभा से इस्तीफा देना पड़ेगा। कोरोना की दूसरी लहर में व्यवस्थाओं को लेकर भाजपा की छवि भी खराब हुई है। ऐसे में क्या भाजपा लोकसभा चुनाव में जाने का रिस्क उठा सकती है, ये सवाल भी उठाए जा रहे हैं।
राजनीतिक अस्थिरता के लिए है उत्तराखंड की पहचान
उत्तराखंड राज्य की पहचान राजनीतिक अस्थिरता के रूप में भी होने लगी है। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। दोनों ही सरकारें नेतृत्व परिवर्तन कर चुकी हैं। इस मामले में भाजपा तो सबसे आगे है। मार्च माह में नेतृत्व परिवर्तन कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद से हटना पड़ा। फिर तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। अब उनके समक्ष भी तकनीकी पेच हैं। या तो वे उपचुनाव लड़ेंगे, या फिर से भाजपा को उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ेगा। उत्तराखंड ने 20 साल के इतिहास में 8 मुख्यमंत्री देखे। अकेले नारायण दत्त तिवारी ऐसे CM हैं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। तिवारी 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
क्या फिर दोहराई जा रही है पुरानी कहानी
क्या फिर कहानी कुछ मार्च माह की तरह ही नजर आ रही है। तब विधानसभा के गैरसैंण में आयोजित सत्र को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। तत्कालीन सीएम सहित समस्त विधायकों को देहरादून तलब किया गया था। छह मार्च को भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था। इसके बाद मंगलवार नौ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं, दस मार्च को भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। दस मार्च की शाम चार बजे उन्होंने एक सादे समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।
इस बार भी रामनगर में आयोजित भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर में भाग लेकर मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री देहरादून पहुंचे। बुधवार सुबह वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। देर रात ही उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करने की सूचना मिली। इसके साथ ही कई तरह की चर्चाओं ने तेजी से जोर पकड़ा हुआ है। ये बुलावा भी अचानक आया। बुधवार के उनके कई कार्यक्रम उत्तराखंड में लगे थे। उन्हें छोड़कर सीएम को दिल्ली दरबार में उपस्थित होने के लिए रवाना हो गए थे।
आप के कर्नल कोठियाल ने ठोकी ताल
उत्तराखंड में गंगोत्री विधानसभा सीट के सीएम तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने की संभावनाओं के बीच आम आदमी पार्टी ने उन्हें टक्कर देने के लिए ताल ठोक दी है। पार्टी वहां से हाल ही में आप में शामिल हुए कर्नल (अ.प्रा.) अजय कोठियाल पर दाव खेलने जा रही है। ऐसे में यदि गंगोत्री विधानसभा सीट पर उपचुनाव होता है तो मुकाबला दिलचस्प होगा।
कर्नल कोठियाल का परिचय
कर्नल अजय कोठियाल (सेवानिवृत) वर्तमान में देहरादून में रहते हैं। इससे पहले वह नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रधानाचार्य रहे हैं और उसके बाद राजनीति में आने की चाहत में सेना से सेवानिवृति ले ली। केदारनाथ आपदा के दौरान उनके नेतृत्व में केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य शुरू किया गया था। इससे उनकी लोकप्रियता भी बढ़ गई। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में प्रधानाचार्य रहने के दौरान ही कर्नल अजय कोठियाल ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा जाहिर कर दी थी। केदारनाथ त्रासदी के बाद केदारनाथ धाम में खोज बचाव कार्य, निर्माण कार्यों में शामिल होने के बाद वह लगातार राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की कोशिश करते रहे।
आपदा के बाद केदारनाथ धाम में अरबों के निर्माण कार्य भी कई बार सवालों के घेरे में रहे। हालांकि, तत्कालिक कांग्रेस सरकार ने इनके काम पर कोई सवाल न उठाने का अनौपचारिक रूप से नियम बना दिया था। लिहाजा केदारनाथ कार्यों पर उठने वाले सवाल यूं ही दफन होते रहे। सेवानिवृति के बाद केदारनाथ धाम में निर्माण कार्यों से प्रेरित होकर उन्होंने एक निर्माण कंपनी बनाई है। जिसके तहत ही भारत म्यांमार सीमा पर सड़क का निर्माण किया था। कर्नल अजय कोठियाल की ओर से गठित यूथ फाउंडेशन के जरिये राज्य के उन युवाओं को सेना में शामिल होने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अब तक उनकी छवि सबकी मदद करने वाला, युवाओं के प्रेरणास्रोत की बनी रही है।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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