स्वाधीनता दिवस के दिन पड़ रहा है भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी का व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा का महत्व, पढ़िए व्रत कथा

संकटों को हरने वाली चतुर्थी
इस साल भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी 15 अगस्त सोमवार को है। इस दिन स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ भी है। ऐसे में एक ही दिन दो महत्व वाले पर्व हैं। जहां देश पूरे उत्सव के साथ आजादी का पर्व मनाएगा, वहीं, आस्थावान लोग संकष्टी गणेश चतुर्थी त्योहार को भी मनाएंगे। इसे हेरंब संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का अर्थ ही है संकटों को हरने वाली चतुर्थी। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी को व्रत रखने और भगवान गणेश की विधि पूर्वक और शुभ मुहूर्त में पूजा करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं और सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, 14 अगस्त रविवार को रात 10 बजकर 35 मिनट पर भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि शुरू हो रही है। यह तिथि 15 अगस्त सोमवार को रात 09 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि को आधार मानकर व्रत रखने की परंपरा के मुताबिक़, भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी का व्रत 15 अगस्त दिन सोमवार को रखा जायेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चंद्रोदय का समय
भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन यानी 15 अगस्त को चंद्रमा का उदय रात 09 बजकर 27 मिनट पर होगा। वहीं चंद्रमा 16 अगस्त को 9 : 04 AM पर अस्त होंगे। ऐसे में जो लोग भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखेंगे, वे 09 : 27 PM पर चंद्रमा का दर्शन करते हुए उन्हें जल अर्पित कर सकेंगे। व्रती उसके बाद व्रत का पारण कर व्रत को पूरा करें। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस व्रत में चंद्रमा दर्शन के बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संकष्टी चतुर्थी के शुभ योग
अभिजित मुहूर्त: 15 अगस्त को दिन में 11:59 बजे से लेकर दोपहर 12:52 बजे तक
धृति योग : 15 अगस्त को सुबह से लेकर रात 11 बजकर 24 मिनट तक
व्रत पूजन मुहूर्त: 15 अगस्त को 09 : 27 PM
गजानन संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
गजानन संकष्टी चतुर्थी से संबंधति पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार दम्पत्ति को ईश्वर में आस्था नहीं थी और वह निःसंतान थे. एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी। उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी। तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया। उसने कहा संकष्टी चतुर्थी के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया। इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी। ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया, लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी। इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया। उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी, जिसकी शादी नहीं हो पायी थी। तब पीपल के पेड़ से आवाज उसे आवाज सुनाई दी। यह बात लड़की ने अपनी मां से बताई। मां पीपल के पेड़ के पास गई और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बताई। तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बताई। तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी। तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये भी है पौराणिक कथा
सकष्टी चतुर्थी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और मां पार्वती के बीच चौपड़ खेल की प्रतियोगिता हुई। इसके निर्णायक के रूप में माटी के एक बालक की प्रतिमा बनाई गई और उसकी प्राण-पतिष्ठा की गई। निर्णायक बालक ने चौपड़ के खेल में मां पार्वती को पराजित घोषित कर दिया। इससे क्रोधित होकर मां पार्वती ने उस बालक को श्राप दे दिया। इसके परिणामस्वरूप वह बालक पैर से दिव्यांग हो गया। बालक के श्रमायाचना पर मां पार्वती ने कहा कि दिया हुआ श्राप तो वापस नहीं होगा, लेकिन श्राप से मुक्ति के लिए कुछ उपाय करना पड़ेगा। मां पार्वती ने उस बालक को गणेश जी की पूजा करने की सलाह दी। कहा जाता है कि जब बालक ने भगवान गणेश की उपासना की तो वह श्राप मुक्त हो गया। इसलिए मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।