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August 1, 2025

महंगाई का दौर, नकली की भरमार, इंसानी रिश्तों की तो बात मत ही करना

महंगाई तो बढ़ रही है। साथ ही अब असली व नकली के बीच भेद करना भी मुश्किल हो गया है। महंगा सामान खरीदा और पता चला कि नकली है। सच तो यह है कि मिलावट का जमाना भी आ गया है। हर चीज में मिलावट है।

देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है। पेट्रोल, सब्जी, राशन-पानी के दाम लगातार बढ़ रहै हैं। अब तो दाम बढ़ना सामान्य बात सी लगने लगी है। करीब तीस साल पहले जब समाचार पत्रों में आतंकवादी वारदात या हत्या आदि के समाचार पहले पेज में छपते थे, तो उस पर लोग भी चर्चा करते थे। बाद में यह बात सामान्य होने लगी। ठीक उसी तरह महंगाई बढ़ना भी अब सामान्य बात होने लगी है। पहले महंगाई बढ़ने पर विपक्ष पर बैठी बीजेपी केंद्र सरकार की नाक में दम कर देती थी। अब उसके पास महंगाई को लेकर तर्क हैं। साथ ही महंगाई के सपोर्टरों की बड़ी जमात खड़ी कर दी गई है। ये लोग महंगाई को देश हित के लिए जरूरी बताते हैं। महंगाई तो बढ़ रही है। साथ ही अब असली व नकली के बीच भेद करना भी मुश्किल हो गया है। महंगा सामान खरीदा और पता चला कि नकली है। सच तो यह है कि मिलावट का जमाना भी आ गया है। हर चीज में मिलावट है। फिर किसे इस्तेमाल करें या किसे न करें, यह सवाल हर जनमानस के मन में उठता है।
सुबह उठने के बाद जब व्यक्ति स्नान आदि से निवृत होने के बाद नाश्ते की तैयारी करता है। नाश्ते में दूध लो, लेकिन क्या पता वह भी असली नहीं हो। सिंथेटिक दूध का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। चेकिंग के नाम पर सरकारी महकमा छोटे विक्रेताओं पर ही शिकंजा कसता है। बड़ी कंपनियों व बड़े कारोबारियों के डिब्बा बंद व पैकेट की शायद ही कभी जांच की जाती हो।
यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि अधिकांश लोग पैकेट की चीजों के इस्तेमाल पर विश्वास करते हैं। एक बार मेरे एक सहयोगी ने बताया कि एक दिन रात के समय उसके हाथ से दूध का पैकेट गिर गया। थैली फट गई। उसने सोचा की सुबह फर्श की सफाई करेगा। सुबह उठने के बाद जब सफाई की तो वह दूध के दाग नहीं छुटा पाया। कई महीने तक दूध के दाग साफ नहीं हो सके। ऐसे दूध को असली कहेंगे या फिर कुछ और।
अच्छी सेहत के हरी सब्जी खाने को डॉक्टर कहते हैं। अब सब्जी के चटक हरे व दमकते रंग भी धोखा हो सकते हैं। सब्जी ताजी दिखाने के लिए परमल, करेला, खीरा, पालक, मटर के दाने आदि में कृत्रिम रंग मैलेचाइड ग्रीन को मिलाया जाता है। इसके घोल में डालने से सब्जी ताजी नजर आती हैं। ऐसी सब्जी को खाने से पेट दर्द, लीवर की खराबी, ट्यूमर, कैंसर जैसे खतरनाक रोग हो सकते हैं।अब दूध भी नकली, सब्जी भी नकली। तो खाओगे क्या। फिर फल पर नजर दौड़ाओ।
डॉक्टर कहते हैं कि ताजे फल खाओ और सेहत बनाओ। रही बात फलों की। उन्हें पकाने का तरीका भी तो नकली है। पेड़ में पकने की बजाय कच्चे फल तोड़कर उन्हें जल्द पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग किया जाता है। खरबूजा, तरबूज, आम, आड़ू, अंगूर आदि इसी से पकाए जा रहे हैं। ऐसे फल खाकर बीमारी को न्योता देना है। तरबूज का लाल रंग भी धोखा हो सकता है। भीतर से सूर्ख लाल दिखने के लिए इसमें रोडामीन बी का इंजेक्शन दिया जाता है। इसे खाना भी बीमारी का न्योता देना है। केला बाहर से सही नजर आता है। छिलका उतारने पर भीतर गला होता है।
नकली फल, सब्जी खाने से बीमार हुए तो डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा। कई डॉक्टर साहब भी नकली हैं। नकली डिग्री लेकर गांव-गांव व कस्बों में उनकी दुकान मिल जाएगी। वे दवा लिखेंगे और हम कैमिस्ट की दुकान पर जाएंगे। क्या गारंटी है कि दवा भी असली हो। वैसे तो फल, दूध, सब्जी की जांच के तरीके भी हैं, लेकिन किसके पास इतना समय है कि इसका परीक्षण करें। सब्जी लाने के बाद उसके एक टुकड़े पर स्प्रीट से भीगी रुईं रगड़ें। ऐसा करने पर मिलावटी रंग रुईं पर लग जाएगा। इसी तरह चायपत्ती व अन्य सामान की भी जांच की जा सकती है।
यहां जांच के तरीके बताउंगा तो यह ब्लाग काफी बढ़ा हो जाएगा। वैसे इसकी कई सामाजिक संगठन किताबें भी देते हैं। पर सच यह है कि जांच करोगे तो कुछ भी खाने लायक नहीं रहोगे। ऐसे में ये विश्वास रखो को हम जो खा रहे वह असली है। खाने के बाद नंबर आता है पीने के लिए पानी का। पानी भी अब शुद्ध नहीं रह गया है। लोगों ने घरों में आरओ लगा दिए हैं। पतित पावनी गंगा का पानी भी प्रदूषित है। इसे भी मैला करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी।
दूध मिलावटी, पानी प्रदूषित, सब्जी का रंग नकली, दही मिलावटी, पनीर मिलावटी, दाल में पॉलिश, जूस मिलावटी सभी कुछ तो नकली है। फिर असली क्या बचा है। इंसानी रिश्ते। यह भी मिलावटी हो सकते हैं और बनावटी भी। तभी तो अपने असली पिता का पता लगाने के लिए पूर्व सीएम एनडी तिवारी पर एक युवक रोहित शेखर ने अपने पिता का दावा किया। मामला न्यायालय पहुंचा और जैविक पिता की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट किया गया। तब रोहित को तिवारी जी ने बेटे के रूप में अपनाया था। हांलाकि, ये घटना सिर्फ उदाहरण के लिए लिखी गई है। क्योंकि इसके पीछे किसी के प्रति मंशा हमारी बुरी नहीं है। आज दोनों पिता और पुत्र इस दुनिया में नहीं हैं। पर यहां सवाल ये भी खड़ा हो जाता है कि पारिवारिक रिश्ते जो हमें बताए जाते हैं वे क्या असली हैं।
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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