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March 10, 2025

दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा-तो निर्वाचित सरकार की क्या जरूरत

दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच अधिकारियों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। कई बार छोटे छोटे निर्णय को लेकर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच अधिकार की लड़ाई अक्सर होती रहती है। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल कई बार केंद्र सरकार पर दिल्ली के काम में अड़गा लगाने का आरोप लगा चुके हैं। इस बीच इन दोनों चुनी हुई सरकार के बीच चल रहे केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। राष्ट्रीय राजधानी को संघ का विस्तारित क्षेत्र करार देने संबंधी केंद्र की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली में निर्वाचित सरकार की आवश्यकता को लेकर सवाल उठाया। गुरुवार को सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच चल रहे विवाद पर सुनवाई फिर से शुरू की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दिनभर की सुनवाई के बाद भी इस मामले में कोई निदान नहीं आया। अब इस मामले में सुनवाई 17 जनवरी को फिर शुरू होगी। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने सामूहिक जिम्मेदारी, सहायता और सलाह को लोकतंत्र का आधार करार देते हुए बुधवार को कहा था कि उसे एक संतुलन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण केंद्र या दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए अथवा बीच का रास्ता तलाशना होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार की दलीलों को सुना। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता दलीलें पेश कर रहे थे। दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर दिल्ली में प्रशासन केवल केंद्र सरकार के इशारे पर चलाया जाता है तो फिर दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार होने का क्या उद्देश्य है? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सॉलिसिटर जनरल ने पेश की दलीलें
दरअसल राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र एवं दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से विवाद है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। जिसपर गुरुवार को तीसरे दिन की सुनवाई हुई। सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ के सामने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली का एक अद्वितीय दर्जा है और वहां रहने वाले सभी राज्यों के नागरिकों में अपनेपन की भावना होनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सॉलिसिटर जनरल ने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली एक महानगरीय शहर है और यह लघु भारत की तरह है। दिन भर की सुनवाई के दौरान पीठ ने उन विषयों का उल्लेख किया जिन पर दिल्ली सरकार कानून बनाने में अक्षम है, और राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के संबंध में कानूनी और संवैधानिक स्थिति के बारे में पूछा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

केंद्र को समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा कि एक व्यापक सिद्धांत के रूप में संसद के पास राज्य की प्रविष्टियों और समवर्ती सूची (7वीं अनुसूची की) पर कानून बनाने का अधिकार है। दिल्ली विधानसभा के पास राज्य सूची के तहत सूची 1,2,18,64, 65 (सार्वजनिक आदेश, पुलिस और भूमि आदि) पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। ऐसे में पीठ ने पूछा कि क्या सेवाओं की विधायी प्रविष्टि केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित है? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा-दिल्ली की कार्यकारी शक्तियों का क्या होगा
पीठ ने कहा कि अगर संसद का कुछ क्षेत्रों पर विधायी नियंत्रण है, तो दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों का क्या होगा। दरअसल अदालत जानना चाहती थी कि सॉलिसिटर जनरल यह बताएं कि कैसे सेवाओं का विधायी नियंत्रण कभी भी दिल्ली की विधायी शक्तियों का हिस्सा नहीं था। इसपर सॉलिसिटर जनरल ने कहा राष्ट्रीय राजधानी संघ का विस्तारित क्षेत्र है। केंद्र शासित क्षेत्र को एक भौगोलिक क्षेत्र बनाने का मकसद यह दर्शाता है कि संघ इस क्षेत्र में शासन करना चाहता है। इस पर पीठ ने कहा कि फिर दिल्ली में चुनी हुई सरकार होने का क्या मतलब है? यदि केवल केंद्र सरकार द्वारा ही प्रशासित किया जाना है तो फिर एक सरकार की जरूरत क्या है।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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