Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 30, 2025

आइएसबीटी दिल्ली में वो एक रात, जहां रचा गया ड्रामा, कभी आप तो नहीं फंसे जनाब

जब भी मैं कहीं बाहर जाने के लिए बस या ट्रेन का सफर करता हूं, तो जेबकतरों से सावधान रहता हूं। हमेशा यह डर रहता है कि कहीं जेब कट गई, तो फजीहत होगी।

जब भी मैं कहीं बाहर जाने के लिए बस या ट्रेन का सफर करता हूं, तो जेबकतरों से सावधान रहता हूं। हमेशा यह डर रहता है कि कहीं जेब कट गई, तो फजीहत होगी। ऐसे में सतर्क रहना ही जरूरी है। वैसे तो जेब कतरे ही नहीं, मुसीबत अन्य रूप में भी सामने आ सकती है। कभी लोग जहरखुरानी का शिकार बनते हैं, तो कभी बस व ट्रेन में डकैती का। हर बार ठगी, चोरी या डकैती करने वाले नया फंडा अपनाते हैं। उनके जाल में अक्सर कोई न कोई फंस ही जाता है।
बचपन से ही मैने जेबकतरे तो सुने थे, पर कभी उनका शिकार नहीं बना। पहले सिनेमा हॉल में भी टिकट की खिड़की पर जब भीड़ में मारामारी मचती थी, तब जेबकतरों का काम आसान हो जाता था। वे जेब तो काटते ही थे, साथ ही भीड़ में लोगों की कलई घड़ी पर भी हाथ साफ कर देते थे। अब सिनेमा हॉल में न तो ऐसी फिल्म लगती है, जिसके लिए मारामारी हो और न ही जेब कटने की घटनाएं होती हैं। लोग एडवांस बुकिंग करा लेते हैं। ऐसे में भीड़ से भी बच जाते हैं।
कई बार जेब कटने के बाद तो व्यक्ति की स्थिति ऐसी हो जाती है कि वह यह तक तय नहीं कर पाता कि क्या करे या ना करे। मेरे एक मित्र अनुपम सकलानी जी कुछ साल पहले देहरादून के दिल्ली नौकरी के इंटरव्यू के लिए गए। ट्रेन से उतरकर जब वह स्टेशन से बाहर आए तो उसे पता चला कि जेब कट चुकी है। दूसरी जेब में भी ज्यादा पैसे नहीं थे। सिर्फ इतने पैसे थे कि वह रिश्तेदारों को फोन कर सकते थे। उनके पर्स के साथ ही उसमें रखे एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस व अन्य महत्वपूर्ण कागजात जेबकतरे के पास चले गए।
किसी तरह उन्होंने किसी परिचित को मौके पर बुलाया। उसकी मदद से इंटरव्यू देने गए और वापस देहरादून आ गए। इस घटना को करीब एक माह से अधिक समय बीत चुका था। तब तक मित्र जेब कटने की घटना अन्य मित्रों को सुना-सुना कर थक चुके थे। एक दिन मित्र को छोटा का पार्सल आया। उसे खोलने पर देखा कि भीतर उसके कागजात, एटीएम कार्ड व अन्य परिचय पत्र आदि थे। यानी जेबकतरे को उस पर तरस आ गया और पर्स की राशि खुद रखकर उसके बाकी कागजात लौटा दिए। यहां जेबकतरे का ऐसा व्यवहार मुझे अच्छा लगा।
अक्सर बसों में सामान चोरी व जेब काटने की घटनाएं होती रहती है, लेकिन कई बार तो लोगों को ठगने के लिए बाकायदा ड्रामा रचा जाता है। ऐसे ड्रामे को देखने वाला ही फिर ठगी का शिकार हो जाता है। बात करीब वर्ष 1985 की है। मैं किसी काम से दिल्ली गया था। वापस देहरादून आने के लिए रात करीब दस बजे आइएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंचा। सर्दी के दिन थे। देहरादून की बस के लिए भीड़ में मारामारी मची थी। जैसे ही बस लगती, लोग खिड़की से भीतर घुस जाते और मैं बस में चढने से रह जाता। मेरी बस छुटती चली गई और रात के करीब 11 बज गए।
मैं एकांत में अपना बैग कंधे पर लटकाए बस का इंतजार करने लगा। किसी ने मुझे बताया कि रात 12 बजे तक बस मिल जाती है। तभी अंधेरे एक कोने में एक अधेड़ महिला जोर-जोर से चिल्ला रही थी। वह चप्पलों से एक युवक को पीट भी रही थी। साथ ही गालियां दे रही थी। जैसे ही मौके पर भीड़ लगी, युवक भाग गया। इसके बाद महिला से जो कोई पूछता वह अपनी कहानी सुनाती। बताती कि युवक उसके पैसे लेकर भाग गया। यह बात मुझे हजम नहीं हो रही थी। वह युवक की पिटाई कर रही थी तो वह पैसे लेकर कैसे भाग सकता था।
खैर मैं अलग हटकर बस का इंतजार करने लगा। तभी वह महिला मेरे पास आई और बोली बेटा तूने देखा कि मेरे साथ क्या हुआ। मुझे मेरठ जाना है और किराए तक के पैसे नहीं है। बेटा बीमार है। उसके इलाज के लिए भी पैसे नहीं है। मेरी मदद कर दो। मैं उस महिला को टालना चाहता था। इस पर मेने कहा कि अपने भाई से बात करके बताउँगा। इस पर वह दूसरे शिकार को तलाशने लगी। कुछ देर बाद वह मेरे पास फिर आई और कहने लगी कि भाई साहब यह बताओ कि मेरी क्या मदद कर सकते हो। मेने कहा कि मैं इतना कर सकता हूं कि जिस बस से तुम मेरठ आओगी उससे मैं देहरादून जाउंगा। मै तुम्हारा मेरठ तक का टिकट ले लूंगा।
इस पर वह मुझे ही गालियां देने लगी। मेरी समझ में तब कुछ-कुछ यह आने लगा कि वह महिला आइएसबीटी में क्यों घूम रही है। पहले गुहार लगाकर फिर डरा धमकाकर वह तो लोगों को ठग रही थी। मैं पास ही एक पुलिस कर्मी के पास चला गया और उससे अपना परिचय देकर महिला के बारे में बताया। तब तक महिला दूर कहीं छिप गई। या फिर पुलिस कर्मी ने उसे गायब होने का इशारा कर दिया। तब तक कई अन्य भी वहां शिकायत लेकर आ गए। पुलिसकर्मी ने उसे तलाशने का ड्रामा किया, लेकिन महिला किसी को नजर नहीं आई। बाद में जब मैं किसी से इस घटना की चर्चा करता था, तो कई लोगों ने कहा कि उनके सामने भी ऐसा ही हुआ। कुछ तो ऐसी महिलाओं की ठगी का शिकार भी हो चुके थे।
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *