शिक्षक दिवसः उत्तराखंड में 17 शिक्षक शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित, जानिए शैलेश जी के बारें में
शिक्षक दिवस के आवसर पर देहरादून राजभवन में 17 शिक्षकों को शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसमें प्रारंभिक शिक्षा के 10, माध्यमिक के छह और प्रशिक्षण संस्थान से एक शिक्षक को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने पुरस्कृत किया। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत भी मौजूद रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर सीएम धामी ने पुरस्कार की धनराशि बढ़ाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि शैलेश मटियानी पुरस्कार की धनराशि को 10,000 से बढ़ाकर 21,000 किया गया है। बता दें कि शिक्षा विभाग की ओर से शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार 2022 की घोषणा इस साल फरवरी में की गई थी, लेकिन इन पुरस्कारों के लिए चयनित शिक्षकों को पुरस्कृत नहीं किया जा सका था। अब शिक्षक दिवस पर राजभवन में आयोजित समारोह में इन शिक्षकों को पुरस्कृत किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन्हें मिला पुरस्कार
प्रारंभिक शिक्षा में पौड़ी जिले से आशा बुडाकोटी, उत्तरकाशी से संजय कुमार कुकसाल, देहरादून से ऊषा गौड़, हरिद्वार से संजय कुमार, टिहरी से उत्तम सिंह राणा, चंपावत से रवीश चंद्र पंचौली, बागेश्वर से सुरेश चंद्र सती, पिथौरागढ़ से गंगा आर्य एवं नैनीताल से डा. आशा बिष्ट को सम्मानित किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
माध्यमिक शिक्षा में उत्तरकाशी से लोकेंद्रपाल सिंह, देहरादून से संजय कुमार, पिथौरागढ़ से दमयंती चंद, बागेश्वर से त्रिभुवन चंद, अल्मोड़ा से डा. प्रभाकर जोशी, ऊधमसिंह नगर से निर्मल कुमार को पुरस्कृत किया जाएगा। इसके अलावा प्रशिक्षण संस्थान से जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बागेश्वर के प्रवक्ता डा. शैलेंद्र सिंह धपोला को सम्मानित किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वर्ष 2009 में की गई थी शुरुआत
शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार, की शुरुआत 2009 में की गई थी। शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार शिक्षकों को दिया जाने वाला पुरस्कार है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, विद्यालयों में संसाधन विकास, छात्रहित में किये जाने वाले अभिनव क्रियाकलापों, सामुदायिक सहभागिता में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने, समग्र रूप में कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक की भूमिका निर्वहन करने तथा समाज के मध्य आदर्श शिक्षक का कार्य करने वाले शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों, प्रधानाचार्यों को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यहां इतिहासकार एवं देहरादून निवासी देवकी नंदन पांडे शैलेश मटियानी के जीवन यात्रा पर प्रकाश डाल रहे हैं, जो इस प्रकार है। अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछिना में 14 अक्टूबर 1931 को शैलेश मटियानी का जन्म हुआ था। इस महान साहित्यकार ने पचास वर्षो तक साहित्य साधना की। आंचलिक साहित्य का जन्म व विकास इनके साहित्य से हुआ। आंचलिकता में जिस संकुचित वातावरण का बोध होता है, वह मटियानी जी के साहित्य में देखने को नहीं मिलता। इनकी आंचलिकता में विविधता है। अपने जीवन की तरुण अवस्था में इतने सफल उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित हो जाने का कारण उपन्यासों के कथा शिल्प के साथ इनका गरिमामय व्यक्तित्व भी था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मटियानी, भाषा के कुशल जुलाहे थे। शब्दों का ताना-बाना इतनी बारीकी से बुनते थे कि पाठक को उसकी गूढ़ता में कोई अदृश्यभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। उनके आंचलिकता एवं वातावरण का चित्रण करने की कला इन्हें गोर्की के समकक्ष ला देती है। गोर्की जैसी भाषा की जादूगरी, भाषा के भंवर मटियानी की साहित्य कला की विशेषता है। कुमाऊँनी परिवेश को समझने और जानने के लिए इनकी कहानियाँ श्रेष्ठ माध्यम हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हुए उनके लेख उत्तराखण्ड के विकास स्वप्न को दर्शाते हैं। सन् 1994 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने मटियानी जी को डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, लोहिया सम्मान तथा साधना सम्मान आदि ने भी समय-समय पर इनकी साहित्य साधना को प्रोत्साहित किया है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित कराने हेतु मटियानी जी ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रख्यात साहित्यकार व लेखक शैलेश मटियानी जीवन के अन्तिम वर्षों में मानसिक यंत्रणा, आर्थिक विपन्नता, अकेलेपन की पीड़ा व पुत्र की मृत्यु से टूट चुके थे। इन्हीं निराशाओं के कंटकों ने उन्हें उत्तरांचलवासियों से सदैव के लिए 24 अप्रैल 2001 को छीन लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शैलेश मटियानी जी का पहला उपन्यास ‘बोरीबली से बोरीबंदर’ है। इसमें उन्होंने बम्बई प्रवास में जिस जीवन संघर्ष को अनुभव किया, उसी का चित्रण किया है। ‘कबूतरखाना’ बम्बई जैसी महानगरी में पलने वाले साधनविहीन समाज का सजीव चित्रण है। बम्बई की ही पृष्ठभूमि में लिखा उनका ‘किस्सा नर्मदाबेन गंगूबाई’ उपन्यास अत्याधिक लोकप्रिय है। मटियानी जी को सबसे अधिक प्रसिद्धि होलदार’ उपन्यास से मिली। यह उपन्यास कुमाऊँ के कौटुम्बिक जीवन का यर्थात चित्रण है। उनके लगभग 24 उपन्यास तथा 15 कथा संग्रह हिन्दी साहित्य की अनुपम धरोहर हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।