शिक्षिका उषा सागर की कविता-मां, मायके को तरसे तेरी बिटिया
मां, मायके को तरसे तेरी बिटिया
जाने कौन से देश गयी तुम,
पता ठिकाना मालूम नहीं।
किससे पूछूं हाल तुम्हारा,
किसी से कोई पहचान नहीं।
तुझसे मिलने को मेरी,
आंखें भी हैं तरस रही।
तेरी यादों में अंखियां,
नित नित बरस रही।
घर की दहलीज हुई पराई,
कैसे तुम्हें बताऊं।
ढूंढूं वो घर द्वार कहां,
जहां तुम्हें मैं पाऊ।
लिखना चाहूं मैं तुझको,
रोज ढेरों चिट्ठियां।
मां मायके को तरसे है,
तेरी प्यारी बिटिया।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूना लगता है ओ घर तेरा,
जिसकी तुम रौनक थी।
आना जाना होता था मेरा,
जब तक तुम जिन्दा थी।
नहीं चाहता मन मेरा,
उस चौखट पर जाने का।
इंतजार करती थी तुम,
जहां बेटियों के आने का।
तेरे दर पे जाने से,
बरसे हैं मेरी अंखियां।
मां माइके को तरसे है,
तेरी प्यारी बिटिया।
सब कहते थे मां तक ही,
होता सबका मायका।
बिन मां के होता है यह,
सिर्फ सपनों सा धोखा।
हर बेटी को लगता है,
सब कुछ ही बेगाना।
तुम क्या थी, हम क्या हैं ,
ए सबने अब है जाना।
ढूंढ़ रही सब जगह तुझे,
हैं मेरी डबडबाई अंखियां।
मां मायके को तरसे है,
तेरी प्यारी बिटिया।
लौट जहां में आना तुम,
छोड़ कभी न जाना तुम।
तेरे आने से फिर,
घर महक सा जाएगा।
हर बालक तेरा तुझको,
मां कहकर बुलाएगा ।
याद पुरानी मिटाने को,
सीने से लग जाएगा।
अपने सुख-दुख की तुझसे,
बैठ करूं मैं ढेरों बतिया।
कभी न मायके को तरसे,
सारे जग की बिटिया।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।