शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- घर मेरा क्लास रूम हो गया
घर मेरा क्लास रूम हो गया
कभी कभी सोचता हूं मैं,
आखिर आज ये क्या हो गया।
न जानें आज क्यों मेरा जीवन,
मोबाइल पर ऑनलाईन हो गया।
इसीलिए तो मेरा घर ही,
बच्चों के लिए क्लास रूम हो गया
वो भोर वंदना की मधुर आवाजें,
लगता सुने वर्षों हो गया।
तू ही राम है तू रहीम की धुन,
याद में उसकी मैं खो गया।
मानों ठहर सी गई है जिंदगी,
घर ही मेरा क्लास रूम हो गया।।
वो मेरा तुम सब बच्चों को डांटना,
शायद सपना जैसा हो गया।
वो ब्लैकबोर्ड पर लिखने की यादें,
यादों में मैं उसकी खो गया।
उलझ सी गई है सबकी जिंदगी,
घर ही मेरा क्लास रूम हो गया।।
कितनी शैतानी करते थे तुम बच्चे,
अब नहीं दिखती ये क्या हो गया।
होम वर्क का कितना अच्छा बहाना,
कापी घर पर है तुम्हारा ये कहना।
नहीं दिखता अब सब ये मुझे,
घर ही मेरा क्लास रूम हो गया।।
आखिर आज क्यों मेरा जीवन,
तुमसे क्यों इतना दूर हो गया।
अब न टोकना न डांटना तुम्हे,
ऐसा आज ये क्यों हो गया।
पर शायद तुम कुछ समझो,
घर ही मेरा क्लास रूम हो गया।।
तुम्हे सिखाना एहसान नहीं मेरा,
ये तो मेरा अपना फर्ज हो गया।
मैं चाहता महत्व समझो शिक्षा का
इसीलिए तो मैं ऑनलाइन हो गया
तुम्हारे भविष्य के लिए ही तो,
घर ही मेरा क्लास रूम हो गया।।
बीतेंगे जरूर बुरे पल यहां,
अच्छे पलों की यादों में मैं खो गया
खूब पढ़ो लिखो घर में दिल से,
तो समझो सार्थक घर मेरा,
तुम्हारे लिए क्लास रूम हो गया।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।