शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- दौलत सस्ती जिंदगी महंगी
दौलत सस्ती जिंदगी महंगी
न जानें आज क्यों,
मन में उदासी छा गई।
क्यों जिंदगी महंगी,
और दौलत सस्ती हो गई।।
वक्त भी कैसा आया अब यहां,
रिश्तों की कीमत कम हो गई ।
अब दूरियां दवाई बन चुकी हैं,
क्यों आज अपनों से दूरियां हो गई।
क्यों जिंदगी महंगी ,
और दौलत सस्ती हो गई।।
कौन फैला रहा ये नफरतें,
पहचान उसकी जरूरी हो गई।
फिर क्यों कसमें जीने मरने की,
जब अपनों से ही दूरी हो गई।
घर रोशन शहर सुनसान से,
शहरों की रोशनी कम हो गई।
खुशनुमा जिंदगी भी अब,
मानो लगता वीरान हो गई।।
क्यों जिंदगी महंगी,
और दौलत सस्ती हो गई।।
नहीं जीते थे एक दूजे के बिना,
पहचान क्यों अनजान हो गई।।
कोरोना के कारण अब क्यों,
जुबान अपनों की बंद हो गई।
कौन अपनों से अलग करवा रहा,
उस निर्मम की पहचान जरूरी हो गई ।
क्यों अपनों के कारण ही आज,
जिंदगी उसकी बेजुबान हो गई।
क्यों जिंदगी महंगी,
और दौलत सस्ती हो गई।।
खुद की जान बचाने की खातिर,
जान अपनों की भी पराई हो गई।
अछूत बना दिया किसने उसको,
पहचान करना उसकी जरूरी हो गई।
साथ निभा इस दुख की घड़ी में,
क्या पता तुझे भी कल ये बीमारी हो गई।
तब कैसा लगेगा तुझको उस वक्त,
कहकर क्या फायदा भूल हो गई।
क्यों जिंदगी महंगी,
और दौलत सस्ती हो गई।।
जब तक जान है इस काया में,
क्यों अपनों की माया बदल गई।
कुछ पलों की है जो जिंदगानी,
व्यवहार से तेरे क्यों दहल गई।
अपने ही न होंगे जब इस जहां में,
तेरी जिंदगी की कीमत ही क्या रह गई ।
इसके लिए कसूरवार जो भी यहां,
उसकी तो पहचान जरूरी हो गई।
क्यों जिंदगी महंगी,
और दौलत सस्ती हो गई।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना