शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- सांसे हैं पर हवा नहीं
सांसे हैं पर हवा नहीं
आज सबको अपनी सांसे प्यारी,
सांसे तो हैं पर हवा नहीं।
सभी तो दे रहें हैं नसीहते,
पर जिंदगी बचाने की दवा नहीं।।
क्या क्या नहीं बिकता यहां,
खून पानी जान आबरू सभी।
खरीदार इंसान ही तो हैं,
तभी खुदा का कहर बेवजह नहीं।
जो भी है इन गुनाहों में शामिल,
गलती किसी एक की नहीं।
क्या क्या गुनाह नहीं करते हम,
मौत की सजा बेवजह नहीं।।
इंसान ही तो कर रहा ये सबकुछ,
ज़ुल्म कत्ल कोख में बेटी जिंदा नहीं।
जाति धर्म छूत अछूत के नाम पर,
बेगुनाहों की जान की कीमत नहीं
अब क्या बचा है काटने के लिए,
पेड़ काट लिए, गला काट लिया।
बेवजह लूट ली आबरू मासूमों की,
इससे भी शैतानों की प्यास बुझी नहीं।।
अरे इंसान अभी भी संभल जा,
वरना तेरी अब खैर नहीं।
खुद को बदला नहीं गर तूने तो,
तब तक कोई दवा नहीं।।
कितना समझदार तू समझे खुद को,
क्या मास्क लगाना जरूरी नहीं।
पुलिस लगानी क्यों जरूरी हो गई
क्यों अब भी मास्क पहनता नहीं।
मारे जाओगे तुम यहां बेवजह,
खुदा की तुझ पर कोई दया नहीं।
इसीलिए तो कहता सांसे बाकी हैं
पर तेरे जीने के लिए हवा नहीं।।
हवा नहीं,हवा नहीं,हवा नहीं।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
सुन्दर रचना हवा नही