शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-अभी तो मैंने चलना सीखा
अभी तो मैंने चलना सीखा है,
पर राहें तो मुझसे कोसों दूर हैं।
फिर भी कोमल कोमल पैर मेरे,
मंजिल अपनी पाने को मजबूर हैं।।
कौन दिखाये ये राहें मुझको,
इन पर चलना जरूर है।
छाले भी पड़ जाएं गर पैरों में तो,
मंजिल पर जाना जरूर है।।
जाना चाहूँ इस पथ पर मैं तो,
बीच में तपन भरा रेगिस्तांन है।
पर मुझे तो प्यार का जल देने जाना है
उस छोर धरती का मन परेशान है।।
उस ओर धरती का मन प्यासा बहुत,
फूलों में भी छायी घोर निराशा है।
मिलन करने मुझे जाना है उनसे,
उन्हे भी वेसब्री से मिलने की आशा है।।
आशा है, आशा है, आशा है।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।