शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-धीरे धीरे चल इंसा यहाँ
धीरे धीरे चल इंसा यहाँ
धीरे धीरे चल इंसा यहाँ,
अभी तो कई काम बाकी हैं।
गुजर गया जो दिन आज यहाँ,
अभी तो गुजारनी शाम बाकी है।।
इस भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसा,
कई कर्ज चुकाने बाकी हैं।
जीवन पथ पर संभल कर चल इंसा
अभी कई फर्ज निभाने बाकी हैं।।
मत मोड़ मुख अपने रिश्तों से इंसा,
अभी कई रिश्ते निभाने बाकी हैं।
जो रूठ गए अपने इस सफर में,
अभी वे रूठे मनाने बाकी हैं।।
मत कर बेरुखी तू अपनों से इंसा,
उनकी भावनाएं समझना बाकी है।
तेरी बेरुखी से टूटे जो अपनों के दिल,
अभी उनके दिलों को जोड़ना बाकी है।
उलझनों में पड़ी है जो जिंदगानी इंसा
उलझने अब सुलझाना बाकी है।
मत फंस उलझनों के भँवर में इंसा,
अभी अपनों का साथ निभाना बाकी है
मधुर गीत सुना अपनों को इंसा,
अभी तो प्रीत निभानी बाकी है।
कुछ तो अच्छी यादें छोड़ इंसा यहाँ,
पल भर में तेरी साँसे रुक जानी बाकी हैं।
कुछ पलों की है जो ये जिंदगानी इंसा,
अभी सांसो का थम जाना बाकी है।
सुकून से जी ले कुछ पल अपनों संग,
फिर मौत तो आना बाकी है।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।