शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-स्वार्थी मत बनो
स्वार्थी मत बनो
पेड़ पौधे पुष्प धूप में खड़े अडिग,
उन्हें जल तो देने आ जाओ।
सूख रहा तन मन अब उनका,
फुहार उन पर जल की तो बरसाओ।
कुछ भी स्वार्थ नहीं उनका तुमसे,
फिर भी कुछ न कुछ उनसे तुम पाओ।
अन्न जल फल सब्जी हवा देते तुमको,
धार न दरांती की इन पर बरसाओ।।
तन पर बहुत दर्द होता इनको भी,
कुछ पल इनको भी तो सहलाओ।
अरे बेजुबान हैं तो क्या हुआ,
प्यार कुछ इन पर भी तो छलकाओ।।
नहीं मांगते तुमसे ये कुछ भी,
कहते कुछ बून्दे पानी की बरसाओ।
करोगे मन से सेवा इनकी तुम तो,
तभी तो शुद्ध जल हवा तुम पाओ।।
कैसे बचेगा जीवन इनका,
कुछ तो बात तुम बतलाओ।
इनमें भी तो जीवन होता है,
इन्हे भी तो नव जीवन दे जाओ।।
खुद के लिए जीना क्या जीना है,
कुछ तो तुम ऐसा कर जाओ।
इनसे ही हमारा जीवन रहेगा,
पेड़ लगाकर पुण्य कमाओ।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।