शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-बस मुझमें यही तो कमी है
बस मुझमें यही तो कमी है
नहीं कठोर हृदय लिए खड़ा हूं,
मेरे हृदय में भी, भरी नमी है।
दुःख बोल नहीं सकता अपना,
बस मुझमें यही तो कमी है।।
चिंता मुझे उन कोंपल कलियों की
रौंद रहे सब उनका तन मन।
उनका दुःख बोल नहीं सकता,
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
मैं संसार में मधुर स्वर, गुंजन,
दूर गगन तक बिखेरना चाहूं।
स्वरों का दुख बोल नहीं सकता,
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
खुश होकर चहकना चाहते परिंदे
पिंजर बंध उन्हे इंसान करना चाहे
परिंदों की वेदना बोल नहीं सकता
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
गुंजन प्रहार शासन पर करना चाहूं,
पंक्तिबद्घ बेरोजगार खड़ा है।
उनकी पीड़ा बोल नहीं सकता,
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
क्यों कुचला जा रहा भविष्य उनका
पंक्तिबद्ध डिग्री लिए खड़ा है
वेदना उनकी बोल नहीं सकता।
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
कौन सुनेगा वेदना इनकी,
यहां तो शासन मूक पड़ा है।
मूक शासन से बोल नहीं सकता,
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
जाग जाअब मूक बाणी लिए शासन,
पंक्तिबद्घ अपना ही तो खड़ा है
पंक्तियां मैं उनकी तोड़ नहीं सकता,
बस मुझमें, यही तो कमी है।।
पर आयेगा जरूर एक दिन,
नव प्रभात लिए जीवन में।
मैं सबकी वेदना बोल सकूंगा
बोल उठेंगे धरा,गगन सभी,
नहीं तुझमें तो, कोई कमी है।।
कोई कमी है, कोई कमी है
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना?