शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-हम गांव क्यों भूल गए
हम गांव क्यों भूल गए
आखिर क्यों शहर की,रंगीनियों में,
हम यूं ही मशगूल हो गए।
पुरुखों का घर था गांव में एक,
क्यों उसे हम यूं ही भूल गए।।
शहर में था जो आशियाना हमारा,
उसे रंगो से हम सजाते चले गए।
घर था जो एक पुराना गांव में,
उसे दिल से क्यों हम मिटाते चले गए।
बीता था जो बचपन गांव की गलियों में,
वो बचपन भी हम भुलाते चले गए।
शहर की चकाचौंध में आखिर क्यों,
हम यूं ही मशगूल हो गए।।
मां बाबा थे घर में अकेले,
आखिर हम ये भी भूल गए।
राह देखती उनकी नज़रे,
क्यों उनका प्यार भी भूल गए।।
पिया था दूध कभी मां का हमने,
छांव आंचल की भी भूल गए।
कितने स्वार्थी बन बैठे थे हम,
बाबा के झुके कंधे भी भूल गए।।
गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबू भी
शहर के कारण भूल गए।
वो ल हलहाते फसलों के खेत भी
पीपल की छांव भी भूल गए।।
अब भी वक्त है संभलो जरा,
क्यों गांव से नाता भूल गए।
वक्त है अब भी घर लौट चलें,
वर्षों से जिन्हें हम भूल गए।।
भुल गए? भूल गए? भूल गए?
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
बहुत सुन्दर रचना