शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की गढ़वाली कविता-श्रृंगार कर्याल

श्रृंगार कर्याल
उठ दै मेरू लाड़ू मुख हाथ ध्वैयाल
सैसर त्वैन जाती श्रृंगार कर्याल।
उठ दै……………………..
माथा म बिंदिया सिन्दूर डाल्याल
सैंसर त्वैन जाणी श्रृंगार कर्याल।
उठ दै ……………………..
नाक म नथुली अर कुण्डल पैर्याल
गला गुलबन्ध और हार डाल्याल।
उठ दै ………………..
घास लखुडु जैली धीरा धीरा तूजैई
पाणी की गागर अधूरी तू न लीई ।
उठ दै……………………..
सास ससुर बोलला,तू द्वार नी करी
नन्द देवर बोलला तू कुछ न बोलीं रै।
उठ दै ………………………………
कान म कुण्डल और चूड़ी पैर्याल
पैर साड़ी अपनी अर कंण्डा धर्याल
उठ दै ……………………………
पैर म पायल बिछवा पैर्याल
सबकी सेवा कर दी रैं यूं ध्यान धर्याल।
उठ ………………………….
कलेवा कू कण्डा सैंसर म बाटी दै
सास ससुर की सेवा हमेशा कर दी रै
उठ दै ………………………..
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।