शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-वसुन्धरा

वसुन्धरा
वसुन्धरा की जलधारा से
सारी धरती सजती है
कहीं नदियां कहीं तालाब
कहीं जलप्रपात घिरते है।
सुन्दर वन उपवन सजते
वसुन्धरा खिल उठती है
कहीं बुरांश कहीं फ्यूली
कहीं फूलों से महकती है।
हरी भरी है यह धरती
कहीं वृक्षो से सजती है
कहीं खाले कहीं गदरे का
कहीं पानी भी मिलती है।
कहीं मानव जीवन में
नया संचार मिलता है
पशु पक्षियों को भी यहां
सुंदर बहार मिलता है ।
वसुन्धरा धरा धरती
उपहार है सबसे सुंदर
रखना है इसे संजोकर
यह जीवन का श्रृंगार है।
इसे खोने में कभी भी कोई
भूल तुम बिल्कुल मत करना
प्रकृति ने सजाया है इसको
इसको खोने तुम मत देना।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।