शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-मन की व्यथा

मन की व्यथा
आज अपनी कलम से
मन की व्यथा सुनाती हूं
क्यों इतनी सख्त बनी मैं
इसकी बात सुनाती हूं।
कष्टों ने घेरा था मुझको
कैसे कार्य निभाऊं मैं
अपनी इस कमजोरी को
किस किस से छुपाऊं मैं
कष्ट आते हंसती रहती
दुःख को सहती जाती मैं
कमजोर मुझे कोई न समझे
इसलिए भी मुस्कुराती मैं
अगर कहीं अनहोनी होती
वहां पर भी चली जाती मैं
बाहर से उनको धैर्य बधाती
अन्दर से डर जाती मैं।
नब्ज पकड न पाये कोई
इसलिए खिलखिलाती मैं
बाहर आंसू न आये मेरे
अन्दर से घुंटती जाती मैं।
घड़ी जब दुखों की आई
साथ में कोई खड़ा न रहा
इन दुखों को झेल झेल
मन भी अब पत्थर का हुआं
सुख के साथी बहुत हैं तेरे
दुःख में साथ दिया न कोई।
भाई भतीजा कुटुंब बड़ा है
आंसू पोंछने आया न कोई।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।