शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की गढ़वाली कविता-लोक जन

लोक जन
एक दिन सभी गौं का लोकजन
बैठ्या था सभी गौं का चौंक म
कूंई किस्सा कूंई गीत कूंई बात
सुणौणा अपणी जीवन का बारा म
मैं भी ऊंका बीच म बैठिक
अपणी बात सुणौण लगी
कखिम कथा कखि म कविता
सपना तक सुणौण लगी।
सभी हंसणा था मजा लेणा था
इन नी ह्वै सकदूं कभी
तब मैन ऊंतै बताई
बात त यह सच ही छई
जूं भी बतौंणा सच ही बतौंणा
कुछ न कुछ किस्सा ही सई।
फिर अपणी बात बतौंण म
कूंई भी पिछाड़ी नी रै
जैन जू सुणी जैन जू देखी
बोलण कूंई पिछाड़ी नी रै
मैंने भी बोली वैन भी बोली
सबन अपनी बात बोली
आपणी बात बोली बोलिक
कछड़ी समाप्त करियाली
ही कछड़ी तैं हम सब
सामाजिक कछड़ी बोलदा
और आपस म मिलि जुलीक
अपणु जीवन बितौंदान।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।