शिक्षिका डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता- वे दिन भी कितने सुंदर थे

वे दिन भी कितने सुंदर थे।
पर वे दिन भी कितने सुंदर थे।
जब बच्चे, बच्चे थे और वे अपने घर थे॥
अब देखो बच्चे भी मेरे बच्चों वाले हैं।
उनके भी अब अपने घर हैं॥
पर मेरा घरोंदा खाली – खाली सा लगता।
उड़ गए पंछी जैसे बच्चे प्यारे।
उनके पास भी अब सुनहरे पर हैं।
ख़ुशी बहुत है मुझको भी।
क्योंकि उनके भी अब अपने घर हैं॥
पर वे दिन भी कितने सुंदर थे।
जब बच्चे, बच्चे थे और वे अपने घर थे॥
पर जीवन का दस्तूर यही है।
जीत यही है और हार भी यही है॥
पाल – पोस कर लिखा पढ़ा कर यही मनाते।
हम ही ख़ुद जश्न मनाते ख़ुशी बाँटते॥
देखो ख़ुद ही पंछी को, हम उड़ जाने की राह दिखाते॥
पर वे दिन भी कितने सुंदर थे।
जब बच्चे, बच्चे थे और वे अपने घर थे॥
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
प्रोफेसर, डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।