शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-कलियां, पुष्प और चन्द्र

कलियां, पुष्प और चन्द्र
क्यों व्याकुल हृदय, तन वदन छूने को।
कोमल कलियां हाथ गात लिए।
पुष्प भी झुक गए,चन्द्र को देखकर,
हाथों में हरे भरे पात लिए।।
सुकोमल यौवन खिल उठा,
पाकर स्पर्श चन्द्र के लिए।
देख रहे चाव से चन्द्र को,
कलियां उर में यौवन लिए।।
खुश है दोनों पुष्प और कलियां,
श्रृंगार करें चन्द्र के लिए।
नाचने को दोनों आतुर,
पहन वसन कोंपल मधुरस लिए।
आलिंगन करने चल पड़े,
सुकोमल,कोंपल रस लिए।
पिलाने को सौरभ रस वे बेचैन,
मिलने चन्द्र को चल दिए।।
भौरा मन में करुण रौदन लिए,
मंडराए पुष्प कलियों के पास।
सौरभ रस पीने को वो बेचैन,
नफरत चन्द्र से, आंखो में लिए।।
कहता पागल हो गई पुष्प कलियां,
मेरा रस क्यों चन्द्र के लिए।
मंडरा कर मधुर गीत रोज सुनाता मैं,
ऐसा क्या जो खो गए चन्द्र के लिए।।
पर पुष्प और कलियां हो गई दिवानी,
सुध बुध खो गई चन्द्र के लिए।
दोनों मदमस्त प्यार उर में लिए,
चन्द्र को मिलने चल दिए।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।