शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-मैं हार गया
मैं हार गया
करुण रुदन आज न जाने उर में क्यों,
हृदय को यथार्थता मिल गई सारी।
जिसके लिए प्राण प्रेम हृदय में,
वो किसी और पर क्यों वारी।।
वो प्रिये क्यों हार दे गई मुझे,
लिए लाखों सवाल उर में भारी।
मेरे उर में सदा ही उसका मुख,
लिए अनेकों बातें करता सारी।।
बस उसका दारुण दुःख बहुत असहनीय,
वो करुण पीड़ा दे गई भारी।
निश्छल लगती थी उसकी बातें,
पहचान न सका छल उर में भारी।।
न जानें उससे हार कर भी क्यों,
उर में खुशियां लिए अनेकों सारी।
छल का मुख लिए वो बिरहनी,
क्यों किसी और पर थी वारी।।
जीत न सका उसके उर को मैं,
उसका उर था किसी और पर वारी।
निश्छल होकर एक बार तो बता देती,
क्यों छल से हृदय पर घौंप दी कटारी।।
करुण रुदन! न जाने आज क्यों,
वो क्यों थी किसी और पर वारी।
उसके शब्दों की गूंज आज भी,
उर पर वार करे,बातें अनेकों सारी।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।