शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-हौसला
“हौसला”
तन पर कफ़न बांधे,
क्यों वो घर से चल पड़ा है।
ना रहे घर में कोई भूखा,
सड़क पर गाड़ी लिए खड़ा है।।
नहीं खुद की परवाह उसको,
रोजगार के लिए निकल पड़ा है।
मैं तो कुछ भी नहीं साहेब,
हौसला उसका कितना बड़ा है।।
देखो अनजान सड़क चौराहों पर,
क्यों सुबह से वो खड़ा है।
अपनों का पेट भरने के खातिर,
इसीलिए गाड़ी लिए खड़ा है।।
बेसब्री से इंतज़ार सवारियों का,
तभी तो सुनसान राह में खड़ा है।
कैसी भी हो सवारी उसकी,
सम्मान उनके लिए दिल में बड़ा है
सामान उठाने लगा सवारियों का,
नहीं कोई झिझक लिए खड़ा है।
पहुंचे सवारी सलामत मंजिल तक
गाड़ी लिए वो चल पड़ा है।।
कितनी मुश्किल भी हों राहें,
वो तो उस पर निकल पड़ा है।
समझेगा क्या कोई उसकी पीड़ा,
कफ़न बांधे वो चल पड़ा है।।
अपनों की ही खातिर वो तो,
आज वो घर से निकल पड़ा है।
बच्चे ना रहें कभी भूखे उसके,
सड़क पर गाड़ी लिए खड़ा है।।
कहते ड्राइवर सभी उसको,
मेरे लिए उसका सम्मान बड़ा है।
सलाम करता मैं दिल से उसको,
जज्बा उसका सारे जहां से बड़ा है
अगर इंसान समझें उसकी पीड़ा,
सेवा करने वो तत्पर खड़ा है।
वो भी तो अपना ही भाई है,
उसका भी तो सम्मान बड़ा है।।
सम्मान बड़ा है, सम्मान बड़ा है?
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।