शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- लग रहा बसंत सा
लग रहा बसंत सा
लग रहा मृदुल बसंत सा,
परिंदों का गुंजन मेरे वन में।
दिशाएं सभी महक रही,
कलियां खिलने कोआतुर, प्रभात में।
पुष्प भी महका रहे वन वाटिका,
अपने नए सुंदर लिबास में।
लालसा लिए वे अपने मन में,
भौरों की मंडराने की आस में।।
बनमाली भी खुश बहुत आज,
नवजीवन आया बसंत में।
पर पुष्प कलियां निराश हैं बहुत,
न बरसा मेघ मल्हार अंत में।।
कहें मेघ से पुष्प कलियां आज,
बरसो खूब झमाझम हमारे पास में,
नहीं तो सूख जाएंगे तेरे बिना हम,
तन मन प्यासा है बहुत तेरी आस में।।
अब तो आ जाओ मेघ बसंत में,
नाचेंगे झूमेंगे सब साथ में।
मृदुल बसंत तो आ चुका,
आओ तुम लेकर बादलों को हाथ में।।
पुष्प कलियों की पुकार सुनकर,
मेघ बरसने लगा प्रभात में।
खुश होकर प्यासा मन भीगने लगा,
पुष्प कलियां नाचने लगे सब साथ में।।
लग”””””””””””””””””””””””””””” वन में।
दिशाएं””””””””””””””””प्रभात में।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना??