कल्पने, धीरे-धीरे बोल बोल रही जो स्वप्न उबलकर विह्वल दर्दीले स्वर में, कुछ वैसी ही आग सोई है मेरे, लघु...
सुरेन्द्र प्रजापति
प्रणय स्वप्न कमल-नयन का सुख-स्वप्न पुष्प छू लिया, अन्तर्मन, हर सुरों में गंध बसा है पुलकिल होंठ अपावन। जीवन का...
आँसू और मुस्कान जब-जब आँखों में आँसू दिल मचल-मचल छलकती है पीड़ा का क्रंदन होता है अंतर में टिस उभरती...
मत देना वरदान मुझे मैं रोऊँगा, चिल्लाऊंगा निज किस्मत को गोहराउंगा, संतप्त वेदना में तपकर अपना संघर्ष लुटाऊँगा। पग-पग पर...
श्रृंगार की बेड़ियाँ आभूषण, बनाव, श्रृंगार, सौंदर्य की बेड़ियों में जकड़ी करती मिथ्या परम्परा में विहार स्त्री! क्या तुम्हें दुःख...