उम्मीद की उपज उठो वत्स! भोर से ही जिंदगी का बोझ ढोना किसान होने की पहली शर्त है धान उगा...
दो कविताएं
माँ को मूर्खता का पाठ पढ़ता बचपन जन मूर्ख-दिवस पर रो रहा है मेरा मन माँ को मूर्खता का पाठ...
बदलता पहाड़ सदियों की कहानी वो पनघट का। बदलती जवानी बदलती कहानी। खिलती हवाएँ और मिलती दुआएँ। लम्बी सी रातें...
कानून हमें आरक्षण दे दो। मेरा प्यारा हिन्दुस्तान, जहां आरक्षण सदाबहार। आजादी के वर्ष बहत्तर, आरक्षण ही खेवनहार। मेरा प्यारा...
निशांत के लिए शिशिर ऋतु की सीत, ज्यूं जम जाय संसार। ग्रीष्म ऋतु का ताप, उगलता आग आकाश। पावस ऋतु...
बलात्कार तुम हो पुरूष तुमको बलात्कार करने का जन्म से अधिकार है। बहन बेटियों का बलात्कार हम मुर्दों को सहर्ष...
जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ.... जब मैं खुद के अंदर देखता हूँ, एक नया किरदार पाता हूँ, एक...
किसान खड़ा है, सड़कों पर ! मिलजुल कर सब काम करो, व्यर्थ ना बकवास करो !किसान खड़ा सड़कों पर है,...
पव्वा पत्रकार! हां है वह!पव्वा पत्रकार है वह!चाटुकारों का सरदार है वह!जन सरोकारिता का सवाल नहीं!खैराती कुर्सी का उसे लिहाज...
भूख और गरीबी।शरीर और मन का ऩाश करती हैंतिल-तिल कर मरने को मजबूर करती हैं।भूल जाता है प्राणी जीवन का...