रावण! रावण दहाड़ रहा है, सत्य के विरुद्ध मन के स्याह कोनों में! बाहर खड़ी है, कतारबद्ध, डरी-सहमी भीड़! उम्मीदें...
डॉ. सुशील उपाध्याय की कविता-रुक जाओ राहुल
प्रेत के पांव मुझे अक्सर संदेह होता है कि मैं आदमी हूं! क्योंकि रास्ते में गिर जाती है मेरी नाक,...
देह पर दर्ज निशान! मैं, शरीर पर नीले निशान लेकर पैदा हुआ था। इन निशानों के बारे में सबके अपने...
रुक जाओ राहुल! यशोधरा! अब कैसे रो पाओगी? तुम्हीं ने तो राहुल से कहा था- जाओ, पिता से मांगो अपना...