आ जाना मेरे सुर कुट पर क्या देखा है कभी आपने, मां के मंदिर की यह शोभा ! हरित बर्फीला...
कवि
यह साल जा रहा है आने वालों के लिए जगह छोड़ता हुआ वह है ही हजारो साल जैसा वक्त की...
संघर्ष ये जो चमक रहा है हमारे नाम का सितारा, कभी हम भी थे बिखरी हुई धूल से। मेरे जानने...
मैं गीत तेरे… सुन मौतजरा थमकर आना…मैं गीततेरे ही गुनता रहा… मैं गीत तेरे ही…सुन मौत जरा… सब गीत तो...
हम भी किसान रहे हैं। सर पर कर्ज़ पीठ पर कोड़ों के निशान रहे हैं।वो उतने पूजे गए जो जितने...
गा लो जैसे मर्जी जितनी मर्जीएकदम सटीक बात है… अपना TIME आएगा… जब अपना TIME आएगा…२तब सबको पता चल जाएगा…२...
कविता दिन-भर थकान जैसी थी और रात में नींद की तरह/ सुबह पूछती हुई, क्या तुमने खाना खाया रात को।...
झंडा दिवस पर कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता- सशस्त्र झंडा दिवस में देखा, महा शौर्य कुर्बानी का लेखा
सशस्त्र झंडा दिवस सशस्त्र झंडा दिवस में देखा, महा शौर्य कुर्बानी का लेखा।शहीदों का इतिहास टटोला, जल थल नभ पराक्रम...
कड़वा टीचर सही है मैं हूँ टीचर, मेरी चिल्लाहट नहीं जाती।ग़लत हरकत कहीं भी देख, गुर्राहट नहीं जाती।। कहीं बनियाँ...
और रात आ जाती हैपर्वत की पीठ पर बैठा सूरजस्थिर नहीं रहता।लुढ़कता हुआ,धार के पार चला जाता है।केवल रक्तिम आभा-क्षितिज...