हम पर तरस क्यों नहीं आता मम्मी पापा चाची चाचा, हम पर तरस क्यों नहीं आता। बिना पढ़ाई के घर...
कविता
साहित्य और सत्ता साहित्य का सत्य और निश्छल शब्द सता के गलियारे में, जब दस्तक देता है, न... सिंहासन के...
जोंक रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान, तब रक्त चूसते हैं जोंक! चूहे फसल नहीं चरते फसल चरते हैं साँड...
क्या हम स्कूल जा पाएंगे सोचा न था जीवन में, ऐसे दिन भी आयेंगे। कारण कोरोना के हम, घर पर...
श्रृंगार की बेड़ियाँ आभूषण, बनाव, श्रृंगार, सौंदर्य की बेड़ियों में जकड़ी करती मिथ्या परम्परा में विहार स्त्री! क्या तुम्हें दुःख...
कुल्हड़ की चाय की चुस्कियां माटी से जुड़ा रखती है। दुनिया के बदलते तौर तरीकों में भी उस कुम्हार की...
गूँज उठी रणभेरी काशी कब से खड़ी पुकार रही पत्रकार निज कर में कलम पकड़ो गंगा की आवाज़ हुई स्वच्छ...
इंसान क्यों डरा डरा सा क्यों वीरान सी लगती ये धरती, लगता शहर भी सुनसान सा। यही लगता खुदा नाराज...
हां हूं मैं मॉडर्न खयालो की पर जानती हूं मैं संस्कार भी, हां हूं मैं खुले विचारों वाली पर जानती...
छाले बेरोजगारी के हे पथिक! मत कर छालों की परवाह, आगे सफलता की मंजिल खड़ी है। दौड़ता जा कांटों भरी...