क्यों कलम तोड़ने को आतुर मै भी रोज स्कूल जाना चाहूं, क्यों घर में कैद करने को आतुर तुम। मैं...
कविता
जब सरकार बड़ी है बेरोजगारी दूर होगी अब कैसे, डिग्रियां जब जेबों में पड़ी हैं। रोजगारी के सपने लेकर, आशा...
हंसना सिखाया मुझे पहाड की इन वादियों ने रोना सिखाया दुनिया के दर्द ने जीना सिखाया गुरु की अनन्त प्रेरणा...
कलियां, पुष्प और चन्द्र क्यों व्याकुल हृदय, तन वदन छूने को। कोमल कलियां हाथ गात लिए। पुष्प भी झुक गए,चन्द्र...
हम बदल रहे हैं हम कैसे अब बदल रहे हैं मर्यादाएँ तोड़ रहे हैं। भौतिकता में भटक रहे हैं चरित्र...
लोकतंत्र है यह कैसा? जहां चले बस तानाशाही और पैसा, मांगते जो चुनाव में वोट… छापते फिर उसपर नोट। लोकमत...
मनोभाव सोचता हूँ मैं भी अक्सर कुछ ऐसा अब कर जाऊँ । ऋषयों की भाँति मैं भी परमतत्व को जान...
यह दक्खण पंथ भी देख लिया जी ! न चुनाव हुए - न राजा हारे, बिना जंग 'सूबे' दार हैं...
मैं कवि नहीं मैं कवि नहीं फिर भी, कुछ मन की बातें लिख लेता हूं। कभी कभी कोरे पन्नों पर,...
मैं एक नारी हूँ अपने हालतों पर भारी हूँ जलायी गई हूँ कई बार आग में फिर भी न हुई...