बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का चला बुलडोजर, बताया अराजकता, खींच दी लक्ष्मण रेखा
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार तरह की अन्य राज्य सरकारों के बुलडोजर एक्शन पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना बुलडोजर चला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर न्याय पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से लोगों के घर गिराए जाने को असंवैधानिक बताया है। साथ ही ऐसी कार्रवाई को अराजकता बताया। अदालत ने कहा कि यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह अभियुक्त है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की गंभीर अपराधों के आरोपी और दोषी के खिलाफ भी बुलडोजर की कार्रवाई बिना नियम का पालन किए नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कानून का शासन, नागरिकों के अधिकार और प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत आवश्यक शर्त है। अगर किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है, क्योंकि व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक है। इसके साथ ही कोर्ट ने गाइडलाइन के जरिये लक्ष्मण रेखा खींच दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चाहे यूपी की योगी सरकार हो या फिर दूसरे राज्य की सरकार। बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का इन सरकारों की कार्यप्रणाली पर करारा थप्पड़ पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 13 नवंबर, 2024 को विभिन्न राज्यों में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाया। फैसले में इस तरह की कार्रवाई को गलत तरीका बताया है। जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई ने फैसला सुनाते हुए कवि प्रदीप की कविता का हवाला दिया और बताया कि किसी के लिए घर की अहमियत क्या होती है। जब घर टूटता है तो पूरे परिवार पर क्या गुजरती है। उन्होंने कहा कि किसी आरोपी या दोषी का घर गिरा देना पूरे परिवार के लिए सजा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की कविता का हवाला देते हुए कहा कि घर सपना है, जो कभी न टूटे। कवि ने कविता को इस तरह से कहा है- अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है। इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे। कोर्ट ने कहा कि आरोपी या दोषी का घर गिराना गलत है। सिर्फ इस आधार पर किसी का घर नहीं गिराया जा सकता। क्योंकि वह शख्स किसी अपराध में आरोपी या दोषी है। फैसले में जस्टिस गवई ने कई अहम और बड़ी बातें कही हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि जो अधिकारी कानून को हाथ में लेते हैं और अनियंत्रित तरीके से काम करते हैं, उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। कोर्ट ने फैसले में एक और बड़ी अहम टिप्पणी की और कहा कि किसी आरोपी या दोषी का घर गिरा देने जैसी कार्रवाई पूरे परिवार के लिए सजा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका की ओर से ऐसी कार्रवाई की अनुमति देना कानून के शासन के खिलाफ है। यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के भी खिलाफ है। क्योंकि सजा सुनाने का काम न्यायपालिका का है। जस्टिस गवई ने फैसले में यह भी कहा है कि किसी को दोषी ठहराना सरकार का काम नहीं है और अगर सिर्फ आरोपों पर किसी का घर तोड़ दिया जाता है तो यह कानून के शासन के बुनियादी सिद्धांत पर हमला होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस गवई ने कहा कि सरकार को अधिकार नहीं कि वह जज बन जाए और किसी आरोपी की संपत्ति को गिराने का फैसला सुना दे। उन्होंने कहा कि अगर अचानक से किसी संपत्ति को गिराने के लिए चिह्नित किया जाता है, जबकि उसी तरह की दूसरी संपत्तियों को छुआ तक नहीं जाता, तो साफ है कि मकसद गैरकानूनी प्रॉपर्टी गिराना नहीं, बल्कि बिना मुकदमा चलाए ही दंड देने की कार्रवाई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अपने फैसले में जस्टिस गवई ने कहा कि किसी का घर उसकी उम्मीद होती है। हर किसी का सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छिने। हर आदमी की उम्मीद होती है कि उसके पास आश्रय हो। हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है, जिस पर अपराध का आरोप है। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता, क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है। उन्होंने कहा कि आरोपों पर सच्चाई का फैसला सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सत्ता का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी एक की गलती की सजा पूरे परिवार को नहीं दे सकते। आरोपी एक तो पूरे परिवार को सजा क्यों? गलत तरीके से घर तोड़ने पर मुआवजा मिले। सत्ता का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बुलडोजर ऐक्शन पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता है। बुलडोजर की मनमानी पर अधिकारियों को नहीं बख्शेंगे। घर तोड़ने की हालत में संबंधित पक्ष को समय मिले। किसी अपराध की सजा देने अदालत का काम है। बिना फैसले के किसी को भी दोषी न माना जाए। ऐसे मामलों में रजिस्टर्ड पोस्ट से नोटिस भेजें, 15 दिन का वक्त मिले। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट का कथन
अदालत ने कहा कि हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है, जिस पर अपराध का आरोप है। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता, क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है। उन्होंने कहा कि आरोपों पर सच्चाई का फैसला सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। अदालत ने कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक शासन का मूल आधार है। यह मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है। कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यस्था बनाए रखे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
राज्य की मनमानी पर लगाई रोक
अदालत ने कहा कि सभी पक्षों सुनने के बाद ही हम आदेश जारी कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि हमने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है। यह व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं। अदालत ने कहा कि सत्ता के मनमाने प्रयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से हो रही कार्रवाई को लेकर अपनी गाइडलाइन जारी की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये है गाइडलाइन
यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए।
सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश।
बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की जाएगी।
मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और नोटिस को संरचना के बाहर चिपकाया भी जाएगा।
नोटिस तामील होने के बाद अपना पक्ष रखने के लिए संरचना के मालिक को 15 दिन का समय दिया जाएगा।
तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे।
नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध कराया जाएगा।
प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा, उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा।
इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा।
आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे।
विध्वंस की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाएगी। वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए।
सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।
इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी। अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा। सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए जाने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फैसले के महत्वपूर्ण बिंदु
किसी एक की गलती की सजा पूरे परिवार को नहीं दे सकते।
आरोपी एक तो पूरे परिवार को सजा क्यों?
गलत तरीके से घर तोड़ने पर मुआवजा मिले।
सत्ता का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
बुलडोजर ऐक्शन पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकता है।
बुलडोजर की मनमानी पर अधिकारियों को नहीं बख्शेंगे।
घर तोड़ने की हालत में संबंधित पक्ष को समय मिले।
किसी अपराध की सजा देने अदालत का काम है।
बिना फैसले के किसी को भी दोषी न माना जाए।
रजिस्टर्ड पोस्ट से नोटिस भेजें, 15 दिन का वक्त मिले।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।